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रविवार, जुलाई 16

कल तक थी सजल(रुबाई)


आँखें आज है सूखी कल तक थी सजल

जो आज है कल था ना होगा कभी कल

इंसान वही होता है वक्त अलग

जो आज है निष्फल कल होगा वो सफल

कुमार अहमदाबादी

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  कहता हूं मैं भेद गहन खुल्ले आम  कड़वी वाणी करती है बद से बदनाम  जग में सब को मीठापन भाता है  मीठी वाणी से होते सारे काम  कुमार अहमदाबादी