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शनिवार, जुलाई 15

प्राणेश्वरी प्राण प्यारी(ग़ज़ल)


प्राणेश्वरी प्राणप्यारी मनमोहीनी तुम

कोयल सी मीठी सुरीली मृदु भाषिणी तुम


मैं हो गया धन्य जीवन भी हो गया है

हूं भाग्यशाली हो मेरी अर्धांगिनी तुम


आवाज जब जब सुनी तुम्हारी लगा ये

हो भैरवी राग की मोहक रागिणी तुम


धीमी धीमी चाल चलती हो मस्ती में जब

कहता है मेरा हृदय हो गजगामिनी तुम


तुम्हारी मरजी न हो और मैं छेड़ दूं तो 

बन जाती हो पल में तूफानी दामिनी तुम

कुमार अहमदाबादी

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मीठी वाणी क्यों?

  कहता हूं मैं भेद गहन खुल्ले आम  कड़वी वाणी करती है बद से बदनाम  जग में सब को मीठापन भाता है  मीठी वाणी से होते सारे काम  कुमार अहमदाबादी