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मंगलवार, जुलाई 25

शीतल छाया(रुबाई)

अब तक डूबे थे धन की माया में

या फिर नारी की कोमल काया में

संध्या है अब कुछ पल धीरज धर कर

बैठो सत्संग की शीतल छाया में

कुमार अहमदाबादी

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बेमौसम बरसात (रुबाई)

जब जब होती है बेमौसम बरसात  शोले बन जाते हैं मीठे हालात  कहती है बरसात आओ तुम भीगो हौले हौले फिर भीगेंगे जज़बात  कुमार अहमदाबादी