सौ बहाने थे किये अर्धांगिनी के सामने
एक भी पर ना चला उस मनचली के सामने
श्रीमती को तार सप्तक में बुलाना भूल थी
भूल मैं स्वीकार करता हूँ सभी के सामने
सूर्य की पहली कीरण को देखकर सब ने कहा
कालिमा की हार तय है रोशनी के सामने
चुलबुली है मसखरी भी और जिम्मेदार भी
मुस्कुराती है सदा वो दिल्लगी के सामने
मौन सब से श्रेष्ठ है हथियार सुन ले ए कुमार
किसी की चलती नहीं है श्रीमती के सामने
*कुमार अहमदाबादी*
तार सप्तक यानि उंचा स्वर
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