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शनिवार, जुलाई 29

वो उपन्यास वो दृश्य

आज सुबह आनंद जी को जन्म दिवस की बधाई देते समय मैंने वेदप्रकाश शर्मा के उपन्यास बहु मांगे इंसाफ के एक दृश्य का उल्लेख किया था. उस दृश्य का वर्णन करूं. उस से पहले भूमिका बांधता हूं. 

बहु मांगे इंसाफ की कहानी एक दौलतमंद मगर दहेज के भूखे परिवार की कहानी थी. परिवार के सारे सदस्य उच्च शिक्षित थे एवं पुरुष महत्वपूर्ण पदों पर थे. ज्यादातर पुरुष न्यायक्षेत्र से जुड़े क्षेत्रों में थे. 

परिवार में मुखिया उस की पत्नी दो बेटे दो बहुएं और एक नौकर इतने व्यक्ति थे.

छोटे बेटे की ससुराल से उम्मीद से कम दहेज आया होने से वे नाराज थे. इस नाराजगी के कारण उस दिन छोटी बहू को जला देते हैं. जिस दिन बड़ी बहू अपने पीहर जाती है. उस के बाद एसा षड्यंत्र रचते हैं कि वो आत्महत्या लगे. वो अपने षडयंत्र पर अमल भी कर लेते हैं, अर्थात बहू को छोटी बहू को मार देते हैं. वे बहू को मारते इसलिए हैं की बहू की बीमे की रकम भी उन्हें मिल जाए और छोटे बेटे की दुबारा शादी भी कर सके.

उन का षडयंत्र लगभग सफल हो गया था, लेकिन अचानक बीमा कंपनी के डिटेक्टिव केशव पंडित को लगता है. इस घटना में कुछ असामान्य है. वो बीमे का चेक रुकवा देता है और अपनी तरह से षडयंत्र का भंडाफोड़ करने निकल पड़ता है. 

(अनुसंधान...अगली पोस्ट में....)

महेश सोनी

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