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सोमवार, जुलाई 17

रास्ते के पत्थरों को जब हटाया(गज़ल)


रास्ते के पत्थरों की जब हटाया

काफ़िला पदयात्रियों का मुस्कुराया


यात्रियों ने लक्ष्य को जब पा लिया तो

गीत सावन ने रसीला गुनगुनाया


पथरीले पथ पर चला था वो सदा पर

पांव उस का एक भी ना डगमगाया


देखकर उस को ये लगता ही नहीं की

जालिमों ने है बहुत उस को सताया


कल चिता उस की जली थी आज देखो

देह लेकर फिर नयी वो लौट आया

कुमार अहमदाबादी

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मीठी वाणी क्यों?

  कहता हूं मैं भेद गहन खुल्ले आम  कड़वी वाणी करती है बद से बदनाम  जग में सब को मीठापन भाता है  मीठी वाणी से होते सारे काम  कुमार अहमदाबादी