कहेगा जो मन यौवनाएं करेगी
जलाएगी बनकर शमाएं जलेगी
अगर भी करेगी मगर भी करेगी
ये नखरे सदा प्रेमिकाएं करेगी
कभी हां कहेगी कभी ना कहेगी
कभी रुठकर व्यंजनाएं करेगी
कभी चूड़ियों की खनक के सहारे
चखो ना दही गोपिकाएं कहेगी
झुकाकर नयन को उठाकर नजर को
इशारों से सब घोषणाएं करेगी
सजाओ बहारें बसंती बदन में
गुलों सी हसीं कामनाएं करेगी
नशीले नजारे नशीली बहारें
बताओ अभिसारिकाएं कहेगी
कभी आग बनकर कभी राख बनकर
मनाओ हमें कामनाएं करेगी
कुमार अहमदाबादी
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