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मंगलवार, जुलाई 18

नमी थी आंख में(मुक्तक)


 रात भर महफिल जमी थी आंख में

 बादलों जैसी नमी थी आंख में

दर्द था एकांत था, था शून्य भी

आंसुओं की पर कमी थी आंख में

कुमार अहमदाबादी 


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जब जब होती है बेमौसम बरसात  शोले बन जाते हैं मीठे हालात  कहती है बरसात आओ तुम भीगो हौले हौले फिर भीगेंगे जज़बात  कुमार अहमदाबादी