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सोमवार, जुलाई 31

बहु मांगे इंसाफ(उपन्यास)

 बहु मांगे इंसाफ

लेखक - वेदप्रकाश शर्मा


एक एसा उपन्यास जिसने उपन्यासों की दुनिया में तहलका मचा दिया था. एसा उपन्यास जिसने वेदप्रकाश शर्मा की लेखनी को बुलंदी पर पहुंचा दिया था. उस समय सामान्यत: एक उपन्यास की 1000 से लेकर ज्यादा से ज्यादा 3000 तक कोपियां बिकती थी. उस समय एसा कहा जाता था. बहु मांगे इंसाफ की दस से पंद्रह हजार कॉपियां बिकी है. बहु मांगे इंसाफ ने जबरदस्त सफलता प्राप्त की थी. इस उपन्यास से पहले वेदप्रकाश शर्मा के उपन्यासों के नियमित चरित्र पात्र विजय, विकास, आशा, नाहर, परवेज और भारतीय सिक्रेट सर्विस का बॉस अजय, प्रिंसेज जैक्सन, सिंगही, अल्फांसे, बागारोफ(ये रूसी जासूस हुआ करता था) पाकिस्तानी जासूस नुसरत तुगलक की जोड़ी; हुआ करते थे. चूं कि ये सब नियमित पात्र थे. इन में सिंगही, प्रिंसेज जैक्सन और अन्य एक दो विलन पात्र थे. लेकिन चूं कि ये रेगुलर पात्र थे. इसलिए पाठक जानते थे. कहानी के अंत में ये पुलिस के हाथ नहीं लगेंगे बल्कि भाग जाएंगे. 


पाठकों की एसी सोच को बदलने के लिए वेदप्रकाश शर्मा ने नए पात्र केशव पंडित का सृजन किया. उस समय दहेज प्रताड़ना के किस्से ज्यादा हो रहे थे. सो, दहेज को केंद्र में रखकर थ्रिलर उपन्यास बहु मांगे इंसाफ लिखा. उस उपन्यास में नए पात्र केशव पंडित का चरित्र चित्रण किया.


विश्वास कीजिए मित्रों, 

वेदप्रकाश शर्मा ने केशव पंडित के पात्र का सृजन सिर्फ उसी उपन्यास के लिए किया था. लेकिन वो पात्र इतना सफल हुआ की बाद में वेदप्रकाश शर्मा को उसे अपना रेगुलर पात्र बनाना पड़ा.


बहु मांगे इंसाफ में अस्सी के दशक के थोड़े बड़े शहर के रईस परिवार की कहानी है. वो रईस परिवार बहुत कम दहेज मिलने का कारण षडयंत्र रचकर अपनी छोटी बहू की हत्या कर देता है. हत्या के समय बड़ी बहू को उस के पीहर भेज देता है. षडयंत्र एसा रचा जाता है, एसा लगे की बहू ने आत्महत्या की है. वे बहु की लाश को ले जाकर एक रेलवे ब्रिज से नीचे फेंक देते हैं. उसी ब्रिज पर बहु का सुसाइड नोट एक कोयले से लिख देते हैं. जो बबूल के पेड़ की लकड़ी के जलने से बनता है. यहीं वो गलती कर देते हैं. 

खैर, 

पुलिस केस होता है. सबकुछ उन की योजना के अनुसार होता है. बीमा कंपनी क्लैम भी पास करने ही वाली थी कि बीमा कंपनी का डिटेक्टिव केशव पंडित अपनी मर्जी से इस केस को हाथ में लेने का निर्णय करता है. जिस के बारे मशहूर था की वो जो केस अपनी मर्जी से हाथ में लेता है. उस में बीमा कंपनी को क्लेम नहीं देना पड़ता. 

लेकिन प्रश्न ये है कि केशव पंडित ने अपने आप ये केस हाथ में क्यों लिया? उसे केस में कहां किस घटना के कारण ये लगा था. इस केस की जांच मुझे करनी चाहिए. जब की पुलिस भी आत्महत्या का केस मान चुकी थी. 

वहीं से केस में बदलाव आता है. केशव पंडित एक के बाद एक परत उधेड़कर रख देता है. लेकिन सब से महत्वपूर्ण प्रश्न ये कि केशव पंडित को केस में कहां या उस परिवार के षडयंत्र में कहां गलती दिखी थी; जिस से उसने केस अपने हाथ में लेने का फैसला किया था? गलती की तरफ संकेत है. लेकिन वो संकेत भर है. 

महेश सोनी

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