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रविवार, जुलाई 30

अल्फांसे की शादी(उपन्यास की कहानी)

आज मैंने वेदप्रकाश शर्मा के दो उपन्यासों के मुखपृष्ठ पोस्ट किये थे. उस में से रामबाण के बारे में लिख चुका हूं. अब दूसरे उपन्यास

 अल्फांसे की शादी  के बारे में लिख रहा हूं. 


अल्फांसे वेदप्रकाश शर्मा के उपन्यासों का नियमित चरित्र यानि पात्र था. जो की एक अंतरराष्ट्रीय ठग था. मुझे लगता है. वेदप्रकाश शर्मा ने अल्फांसे का पात्र चार्ल्स शोभराज के व्यक्तित्व को ध्यान में रखकर बनाया था. हालांकि दोनों पात्रों में एक मुख्य फर्क ये था. चार्ल्स शोभराज ठगी करता था. लेकिन वो ज्यादातर बड़ी उम्र की महिलाओं को शिकार बनाता था. जब की अल्फांसे को महिलाओं में कोई रुचि बल्कि रत्ती भर भी नहीं थी. इस के अलावा दोनों पात्रों में काफी समानताएं थी. 

बहरहाल, वापस उपन्यास की कहानी पर लौटते हैं. 


अल्फांसे और भारतीय जासूस विजय दोनों एक दूसरे के शत्रु थे. लेकिन एक दूसरे की खूबियों के प्रशंसक भी थे. विजय कभी किसी को उस के असली नाम से नहीं बुलाता था. अपनी तरफ से कोई न कोई उपनाम रख देता था. अल्फांसे को विजय लूमड़ प्यारा कहता था. जब की अल्फांसे विजय को जासूस प्यारे के नाम कहता था. 


एक दिन विजय को पता चलता है. अल्फांसे शादी करने वाला है. उस का दिमाग घूम जाता है. अल्फांसे खुद उसे बताता है. वो शादी करनेवाला है. लड़की लंदन में रहती है. विजय को विश्वास नहीं होता. अल्फांसे उसे शादी की तारीख भी बता देता है. ये भी कहता है. तुम्हें हर हाल में मेरी शादी में आना है. विजय को मामला हज़म नहीं होता. वो शादी के दिन से कई सप्ताह पहले लंदन चला जाता है. विजय ने अल्फांसे को अपने बारे में सूचित भी नहीं किया की वो आ गया है. वहां जाकर अल्फांसे की गतिविधियों पर नजर रखने लगा. लेकिन अल्फांसे तो प्यार में दीवाना हो चुका था. वो दिन रात या तो अपनी भावि पत्नी के साथ मीठी मीठी बातें करता रहता या फिर उस की तस्वीर अपने हाथों में लेकर उस तस्वीर से बातें करता रहता था. विजय ने कई सप्ताह वहां बिताए. लेकिन अल्फांसे की कोई शंकास्पद गतिविधि नजर नहीं आई. आखिर विजय को भी लगने लगा की अपना लूमड साला सचमुच बावला हो गया है.


शादी का दिन आ गया. तब तक विजय के साथी आशा, नाहर, परवेज, विकास वगैरह भी शादी में शामिल होने के लिए पहुंच गए. शादी वाले दिन फेरों के समय कुछ पलों के लिए बिजली गुल हो गई. उस समय अंधेरे में विजय को मालूम हुआ कि लूमड साला किस चक्कर में है. अल्फांसे जिस महिला से शादी कर रहा था. उस महिला का बाप एक सिक्योरिटी दल का प्रमुख था. और उस सिक्योरिटी दल की सिर्फ एक ही जिम्मेदारी थी. कोहिनूर हीरे की सिक्योरिटी करना. 


कितना लम्बा खेल खेला था अल्फांसे ने कोहिनूर उड़ाने के लिए उस की सिक्योरिटी करने वाले दल के प्रमुख की लड़की से शादी करके. जैसे ही विजय को मालूम हुआ. अल्फांसे क्या खेल खेल रहा है. वो भी योजना की प्रशंसा किए बिना नहीं रह सका. लेकिन अब विजय के सामने एक दो प्रश्न थे. क्या वो अल्फांसे को कोहिनूर चुराने दे. अल्फांसे के कोहिनूर चुराने के बाद वो अल्फांसे के पास से कोहिनूर उड़ाकर भारत ले जाए; या वहां की सीक्रेट सर्विस को जानकारी दे दे की कोहिनूर खतरे में है. क्यों कि अंतरराष्ट्रीय ठग अल्फांसे उसे चुराने की योजना पर काम कर रहा है. न सिर्फ काम कर रहा है बल्कि इतना आगे बढ़ गया है. कोहिनूर की सुरक्षा करने वाले विशेष दल के प्रमुख के घर तक उन का दामाद बनकर पहुंच चुका है. 

इन्हीं सवालों का पाने के लिए उपन्यास अल्फांसे की शादी पढ़ना पड़ता है.

महेश सोनी

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