ज्ञानी को अंतर का आधार रहा
सूरज की किरनों का आभार रहा
हर युग में वाणी का विस्तार हुआ
दुनिया में तेजोमय भंडार रहा
अनुवादक – कुमार अहमदाबादी
साहित्य की अपनी एक अलग दुनिया होती है। जहां जीवन की खट्टी मीठी तीखी फीकी सारी भावनाओं को शब्दों में पिरोकर पेश किया जाता है। भावनाओं को सुंदर मनमोहक मन लुभावन शब्दों में पिरोकर पेश करने के लिये लेखक के पास कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। दूसरी तरफ रचना पढ़कर उस का रसास्वादन करने के लिये पाठक के पास भी कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। इसीलिये मैंने ब्लॉग का नाम कल्पना लोक रखा है।
ज्ञानी को अंतर का आधार रहा
सूरज की किरनों का आभार रहा
हर युग में वाणी का विस्तार हुआ
दुनिया में तेजोमय भंडार रहा
अनुवादक – कुमार अहमदाबादी
मदिरा से चकचूर हृदय की है मांग
साकी से मदमस्त प्रणय की है मांग
हर दिल को माशूक कहे ये दिन रात
होने दो संगम ये समय की है मांग
कुमार अहमदाबादी
*सूरज की रोशनी उदय से समझो*
*संसार करे याद विनय से समझो*
*अनजान प्रकाश से दिशाएं चमकी*
*घटना है दिन रात समय से समझो**
अनुवादक – कुमार अहमदाबादी*
मानवता का दृष्टिकोण कहता है
तुम इंसान नहीं हो
क्यों कि,
तुमने आंसुओं की मजबूरी
आंखों की बेबसी, इंसान की लाचारी
और दिल की तड़प को
कभी समझा ही नहीं
समझने की बात तो दूर रही
कभी समझने का प्रयास भी नहीं किया
प्रयास भी किया होता तो शायद.......
कुमार अहमदाबादी
वो पत्र पहला पत्र था
जिस ने पत्रों का महत्व बताया था
वो पत्र जो कोमल उंगलियों ने
थरथराते हुए मुझे दिया था
जब उंगलियां पत्र थमा रही थी
उसकी आंखें ये कहकर झुक गई थी कि
इसे पढ़ना जरूर
जब मैं पत्र थाम रहा था तब पत्र देनेवाली उंगलियों से
मेरी उंगलियों ने अनजाने में स्पर्श कर लिया था
तब वो छुईमुई के पौधे सी सिकुड़ गई थी
ठीक से पत्र थमा भी न पाई थी
हालांकि मैंने वो पत्र पढ़ा था
पढ़ने का बाद विश्व बदल भी गया था
मगर सच कहूं तो
वो पत्र पढ़ने की जरूरत थी ही नहीं
पत्र में जो कुछ भी लिखा था
कमलनयनी आंखों ने पहले ही कह दिया था।
*कुमार अहमदाबादी*
गुलाब सा गुलाबी औ’ कमल सा पवित्र
वो सोलहवां साल आज बहुत याद आ रहा है
ना बचपन था ना जवानी थी मगर धड़कनें किसी की दीवानी थी
दीवानी थी एक कली की जो फूल बनने की ड्योढी पर खड़ी थी
दीवाने को देखकर उस की आंख शर्माकर झुक जाती थी
मगर, झुकते झुकते भी बहुत कुछ कह जाती थी
वो कह देती थी वो सब बातें जो कहते हुए
जुबान लड़खड़ा सकती थी थर्रा भी सकती थी
या कहने से ही कतरा सकती थी मगर आंख
शर्मीली होकर भी नीडर थी बहादुर थी
वो सोलहवां साल जब जीवन से
परिचय होने की क्रिया शुरू हो रही थी
तब, जिसने
जीवन के सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्यक्ति से मुलाकात करवाई थी
और जीवन का सर्वाधिक मीठा दर्द भी दिया था
इतना महत्वपूर्ण की, उस दर्द ने हमेशा उस समय भी साथ दिया
जब समय भी साथ छोड़कर चला गया था
तब भी उस दर्द ने एक विश्वसनीय दोस्त बनकर साथ निभाया था निभा रहा है
क्यों? क्यों कि वो सोलहवें साल वाला दर्द है
और, आज भी देख लो वही दर्द इस कलम को चलने के लिए प्रेरित कर रहा है।
*कुमार अहमदाबादी*
मुझे याद है वे तमाम पल जो तेरे दामन में बिताये थे
तुम ही कहो कैसे भूल सकता हूँ मैं भी कभी रईस था
कुमार अहमदाबादी
मित्रोँ, आज मुक्तक पेश करता हूँ।
मैच के बारे में बतानेवाले ज्योतिषियों की बातों ने सिद्ध कर दिया। चैनल पर बैठकर भारत की जीत का दावा करनेवाले सारे ज्योतिषी अपनी अपनी विद्या में ठोठ हैं; डफोळ हैं।
लेकिन इस का अर्थ ये नहीं की ज्योतिष शास्त्र गलत है या बकवास है।
जैसे पढ़ाई में कोई विद्यार्थी होशियार और कोई ठोठ होता है।
जैसे जड़ाई का काम करनेवालों के कुछ बहुत बेहतरीन कारीगर और कुछ एकदम रद्दी काम करनेवाले होते हैं।
जैसे खाना पकानेवाली गृहिणियों और रसोइयों में कुछ बहुत ही स्वादिष्ट और लाजवाब खाना पकाते है; जब की कुछ मामूली और कुछ एकदम बेकार खाना पकाते हैं।
उसी तरह ज्योतिष शास्त्र के अध्ययन और फलादेश करने में भी कोई ज्योतिषी कुशल और सचोट होते है। जब की कुछ एकदम ठोठ होते हैं। उन की गणनाएं गलत होती रहती है। बल्कि ज्योतिष इतना गहन ज्ञान है कि ज्यादातर ज्योतिषी ठोठ ही होते हैं।
कुमार अहमदाबादी
आप भी चलिए संग मेरे मधुशाला में
शब्द दोनों के निखरेंगे मधुशाला में
मधु का असर जब होगा मस्तिष्क पर
मधुधारा अविरत बहेगी मधुशाला में
कुमार अहमदाबादी
द्वेष का हलाहल है प्रेम की कटोरी है
विश्व तेरी ये हरकत एकदम छिछोरी है
बोझ वासना का है सांस के भरोसे पर
कौन ये कहे मन को टूटी प्रेम डोरी है
कुमार अहमदाबादी
ગુજરાત,
મારી ધમનીઓમાં લોહી બનીને દોડે છે
હૃદયમાં ધબકાર બનીને વસે છે
મસ્તિષ્કમાં વિચાર બનીને રહે છે
શ્વાસોમાં જીવન બનીને રહે છે
આંખોને દૃશ્ય બનીને દેખાય છે
જીભ પર સ્વાદ બનીને ઓગળે છે
કાન ને ગરબા બનીને સંભળાય છે
કલમ થી શબ્દ ગંગા બનીને વહે છે
ગુજરાત,
મારી ધમનીઓ માં લોહી બનીને દોડે છે
અભણ અમદાવાદી
फूल को चूमने के लिए हौसला चाहिए
आग से खेलने के लिए हौसला चाहिए
फूल के रास्ते में मिलेंगे सदा शूल और
शूल से जूझने के लिए हौसला चाहिए
कुमार अहमदाबादी
बाग में घूमने के लिए हौसला चाहिए
फूल को चूमने के लिए हौसला चाहिए
याद रखना मगर साथ कांटे भी होंगे जरुर
शूल से जूझने के लिए हौसला चाहिए
कुमार अहमदाबादी
कुमार अहमदाबादी
द्वार मधुशाला के खुलने दो जरा
पात्र को अमृत से भरने दो जरा
अप्सराएं नृत्य करने आएंगी
रंग मस्तक को बदलने दो जरा
कुमार अहमदाबादी
જામ ને દ્રાક્ષના ખાસ રસથી ભરી દે
મસ્ત મીઠા મધુર પ્રેમરસથી ભરી દે
આ ગુલાબીને ભરપૂર એકાંતવાળી
સાંજને તું મિલન રસ યોગથી ભરી દે
અભણ અમદાવાદી
आंखे हैं नशीली कितनी क्या कहूं सनम
मादक है जवानी कितनी क्या कहूं सनम
भ्रमर है कटिली नकशीदार शिल्प सी
बिंदी है सुहानी कितनी क्या कहूं सनम
कुमार अहमदाबादी
प्रेम सृजनहार है
प्रेम जीवनसार है
अर्थ शब्दों के कहे
प्रेम तो हरिद्वार है
कुमार अहमदाबादी
बसंती रुत है प्याला भी बसंती है
सुहानी देह, जोबन भी रसवंती है
देह लता की कोमलता! क्या कहूं
जैसे सुरीला राग जयजयवंती है
कुमार अहमदाबादी
मूर्ख मन रुप को छेड़ना मत कभी, ज्योत है शांत है पर वो आग है
भस्म कर देगी ज्वाला बनी वो अगर, उस के मन में धधकता अनुराग है
प्यार देखा है डंक देखे नहीं, सोच लेना अगर स्पर्श करना हो तो
गाल पर जो झूले वो अलकलट नहीं, रूप के कैफ में डोलता नाग है
है सुधा आंख में संग हलाहल भी है, जांच विष की कभी करनी न चाहिए
शांत सागर है तूफान को मत जगा, उस के हर ज्वार में मौत का फाग है
कंटकों के अधिकार को जान ले, फूल को छेड़ने वाले ये जान ले
ये किसी की नहीं है निजी संपदा, रात दिन चाकरी कर रहा बाग है
कुमार अहमदाबादी
प्राणेश्वरी प्राणप्यारी मनमोहीनी तुम
कोयल सी मीठी सुरीली मृदु भाषिणी तुम
मैं हो गया धन्य जीवन भी हो गया है
हूं भाग्यशाली हो मेरी अर्धांगिनी तुम
आवाज जब जब सुनी तुम्हारी लगा ये
हो भैरवी राग की मोहक रागिणी तुम
धीमी धीमी चाल चलती हो मस्ती में जब
कहता है मेरा हृदय हो गजगामिनी तुम
तुम्हारी मरजी न हो और मैं छेड़ दूं तो
बन जाती हो पल में तूफानी दामिनी तुम
कुमार अहमदाबादी
साथ मेरे साकी और जाम है
हो रहा है प्रेम कुछ बोले बिना
ये जीवन का सब से मीठा याम है
कुमार अहमदाबादी
किसी की पीयूषी नजर है व मैं हूं
खुमारी भरा ये जिगर है व मैं हूं
निराशा मिली है हृदय को हमेशा
जीवित उर्मियों की कबर है व मैं हूं
नहीं नाखुदा को खुदा पर भरोसा
यहां नाव, गहरा भंवर है व मैं हूं
सफर चल रहा है पुरातन समय से
समय के सरीखा सफर है व मैं हूं
गये जो, गया साथ सर्वस्व उन के
यहां शून्य वीरान घर है व मैं हूं
*शायर – शून्य पालनपुरी*
*अनुवादक – कुमार अहमदाबादी*
जिंदगी और मौत आते हैं गुजरने के लिए
स्वप्न जब आते हैं आते हैं बिखरने के लिए
गर्व करना मत जवानी की अदाओं पर कभी
बाढ़ सरिताओं में आती है उतरने के लिए
पुष्प के जलते हुए जीवन की चिंता है किसे?
लोग उपवन में आते हैं बस विचरने के लिए
नाव भवसागर में डूबी है ना डूबेगी कभी
जीव आते हैं हमेशा पार उतरने के लिए
बुझ रहा है दीप क्यों जब आ रहे हैं प्रेम से
मौत से मिलने परिंदे प्राण त्यजने के लिए
देह का होगा विलय या जड़ मिटा दी जाएगी
मौत आती है यहां पर रोज मरने के लिए
*मूल रचना शून्य पालनपुरी साहब की है*
*अनुवादक – *कुमार अहमदाबादी*
राकेश अहमदाबाद में अठारहवीं मंजिल पर रहता था। एक दिन उस ने अपने मित्र शैलेश के साथ ग्राउंड फ्लोर पर जाने के लिये अपने फ्लोर से लिफ्ट में प्रवेश किया। लिफ्ट चली। कुछ पलों बाद चौदहवीं मंजिल पर रुकी। उस फ्लोर से एक युवा ने लिफ्ट में प्रवेश किया।
राकेश ने कुछ सेकंड बाद युवा से पूछा "कैसे हो बेटे?"
युवा ने उत्तर दिया "बढ़िया अंकल, आप कैसे हैं?"
राकेश बोला "फर्स्ट क्लास बेटा"
राकेश ने फिर पूछा "घर में सब मजे में हैं?"
युवा बोला "हां, अंकल"
इतनी देर में ग्राउंड फ्लोर आ गया।
तीनों बाहर निकले। युवा ने राकेश को बाय कहा और चला गया।
उस के जाने के बाद शैलेश ने पूछा "यार, तूने उस से फालतू की बातें क्यों की?"
राकेश ने कहा "ये फालतू की बातें नहीं थी। टाइम मैनेजमेंट और रिलेशन डेवलपमेंट था।
शैलेश ने पूछा "वो कैसे?"
राकेश ने बताया "वो एसे की जब तक लिफ्ट ग्राउंड फ्लोर पहुंचती। तब तक हम चाहें या ना चाहें हमें कुछ पल साथ रहना ही था। तो, मैंने उस समय का फायदा उठाया। मेरी बिल्डिंग के रहवासी से थोड़ी बातचीत कर ली। बातचीत से समय और रिलेशनशिप दोनों का मैनेजमेंट हो गया।
लेखक — कुमार अहमदाबादी
पिछले कुछ वर्षों से देखा जा रहा है। विपक्ष के अलावा कुछ कथित खास लोग जिस में राजनीति के अलावा मीडिया और सिनेमा क्षेत्र के व्यक्ति भी हैं। प्रधानमंत्री मोदी की हर योजना, कार्य, प्रस्ताव, कानून आदि का विरोध कर रहे हैं। ये समझा जा सकता है। ये तो समझ में आता है। विपक्ष सत्ता पक्ष की योजनाओं और उन के अन्य मुद्दों का संसद में विरोध करता है। इस में कोई नयी बात भी नहीं है की विरोध पक्ष सत्ता पक्ष का विरोध करे। लेकिन ये सोचने की बात है कि कुछ खास लोग एक खास तबका विरोध क्यों कर रहा है?
विरोध करनेवालों में कुछ कलाकारों व पत्रकारों का होना विशेष चिंता की व सोचनेवाली बात है।
उस से भी ज्यादा चिंताजनक बात ये है। ये *अंधेविरोधी* हर बार विरोध करनेके लिये जनता के एक वर्ग को सड़क पर क्यों उतार देते हैं?
विरोध पक्ष ने जम्मू कश्मीर से धाराएं हटाना, विदेश के हिंदू व जैन आदि भारतीयों को शरण देने का मामला, सीएए एक्ट, तीन तलाक, कृषि सुधार बिल इन सब का जिस तरह से सड़कों पर आम जनता द्वारा विरोध करवाया है; जिस तरह से सामान्य जनता को भड़काकर जनता से तोड़फोड़ व प्रदर्शन करवाई है। वो बहुत ही चिंता की बात है।
सामान्य जनता को ये समझना होगा। किसी प्रधानमंत्री की एक योजना में कमी रह सकती है। लेकिन हर योजना हर कार्यवाही में गलती नहीं हो सकती। क्यों कि हर योजना व बिल पर संसद में पास होने से पहले मंत्री मंडल में आपस में भी अच्छी खासी चर्चा होती होगी! योजना के कानूनी मुद्दों पर विचार विमर्श होता होगा?
माना विरोध पक्ष का काम ही विरोध द्वारा योजना या कानून के मसौदे में मौजूद कमियों को बताने का होता है। लेकिन ये अजीब विडंबना है। विरोध पक्ष ने हर बार विरोध करने के लिये सामान्य आदमी को बली का बकरा समझकर सड़कों पर उतारा है।
मुझे कभी मौका मिला तो मैं एक प्रश्न अवश्य विरोध पक्ष के नेता से पूछना चाहूंगा।
क्या आप में ये हिम्मत नहीं है कि आप संसद में सत्ता पक्ष का सामना कर सको। विधेयक में कमियां बता सको?
क्या इसीलिये आप हर विरोध करने के लिये जनता को सड़कों पर उतार देते हैं?
भायला थारी सगी रंगीली है
लोग केवे के पटण में सोरी है
मिश्री घोळर गीत गावे ब्यांव में
गीत गावे प्रेम रा गीतारी है
लूतरा केवे मने जद प्रेम सूं
यार लागे आ सगी मोजीली है
भोळी है पण तेज है बोलण में औ'
सुस्त सागे थोडी सी खोडीली है
आंख में मीठी शरम औ' होठ पर
मौजीली होळी री फीटी गाळी है
बात सुण लो थे सगो जी आज तो
आ सगी केवे सगो जी पेली है
कुमार अहमदाबादी
महाभारत का युद्ध चल रहा था। कौरवों और पाण्डवों के बीच घमासान युद्ध चल रहा था। कर्ण और अर्जुन के बीच आपस में भयंकर बाणवर्षा हो रही थी।
अवसर देखकर एक भयंकर सर्प कर्ण के तुणीर में घुस गया। कर्ण ने बाण निकाला तो स्पर्श कुछ अनोखा सा लगा। कर्ण देखा तो सर्प विराजमान था। कर्ण ने सर्प को देखते ही आश्चर्य से पूछा 'तुम यहाँ किस प्रकार आ गये हो?'
सर्प ने कहा 'अर्जुन ने एक बार खाण्डव वन में आग लगा दी थी। उस में बेटी मात जल गयी। तब से मेरे मन में प्रतिशोध की ज्वाला जल रही है। मैं अवसर की तलाश में था। कब अवसर मिले और अर्जुन के प्राण हर लूं। आप मुझे बाण के बदले बाण के स्थान से मुझे चला दें। मैं अर्जुन को छूते ही उसे डस लूंगा। आप का शत्रु मर जायेगा और मेरे प्रतिशोध की ज्वाला भी बुझ जायेगी।
कर्ण ने कहा 'नहीं, अनैतिक उपाय से सफलता प्राप्त करने का तनिक भी विचार नहीं है। सर्प देव, आप सकुशल वापस लौट जायें।
आर. डी. तापड़िया( अनमोल खजाने के बिखरे मोती से साभार)
*गुर्जर राष्ट्रवीणा के अंक अप्रैल-जून 2018 से साभार*
महमूद दारविश(पेलेस्टीनियन कवि) की रचना का भावानुवाद
घोषणा होगी
युद्ध के समाप्त होने की
दोनों प्रमुख नेता हाथ मिलायेंगे
मुस्कुराते हुये तस्वीर खिंचवाएंगे
शांति की महिमा गायी जायेगी
लेकिन गांवों और शहरों में जो
दादीयां, नानियां, माताएं, पत्नियां, बहनें बेटियां
और नन्हें मुन्ने फूल
व्याकुल मन से बेचैन नजरों से
दादा, पिता, पति, पुत्र, भाई की
प्रतीक्षा कर रही हैं
उन में से किस प्रतीक्षा समाप्त होगी
किस की आजीवन में बदल जायेगी
कौन जाने किसने क्या कीमत चुकाई है
हां, मैं ये कह सकती हूँ
मैंने क्या चुकाया है
क्यों कि मैं भी एक माँ हूँ
धरती माँ
(भावानुवाद - कुमार अहमदाबादी)
प्रितम मेरे
जब तुम पढते थे
तुम्हें भूगोल का विषय
बहुत पसंद था
तुम्हें विश्व के प्रत्येक समंदर
नदियों व पहाडों के बारे में
जानने में रुचि थी
क्या तुम्हें नहीं मालूम कि
देह की भी अपनी
एक भूगोल होती है
उस में भी रस लेना चाहिये
कुमार अहमदाबादी
गाय को माता कहोगे आज से
मात की पूजा करोगे आज से
इतनी सी गर बात तुमने मान ली
ना किसी से तुम डरोगे आज से
कुमार अहमदाबादी
छोटे भाई ने बडे भाई से पूछा 'भाईसाहब, आप हमारे गांव में स्थित कुलदेवी के मंदिर चलोगे?
बडे ने कहा 'नहीं, मेरी किताब पूरी होनेवाली है। प्रकाशन की तैयारियां आखिरी चरण में है। मैं नहीं आ सकता। वैसे मेरे लिये शब्दों की साधना ही कुलदेवी के दर्शन के समान हैं।'
ये सुनकर छोटाभाई अकेला ही दर्शन के लिये चला गया। उसी रात लेखक ये सोचते सोचते सो गया कि 'अरे, मैं छोटे को ये कहना तो भूल ही गया कि तुम मेरे लिये कुलदेवी का प्रसाद लेते आना।'
तीन चार दिन बीत गये।
चौथे दिन रात को बडे को सपना आया। सपने में उसे कुलदेवी दिखी। कुलदेवी ने बडे से कहा 'तू नहीं आ सका। कोई बात नहीं। तू तेरी साधना को छोडना मत। करता रह। मैं तेरे लिये प्रसाद भेज रही हूँ। एसा कैसे हो सकता है बेटा साधना में डूबा हो और माता उस की भूख प्यास का ध्यान ना रखे।
पांचवें दिन शाम को बडे की पत्नी ने कहा 'सुनिये जी, मैं जरा व्यस्त हूँ। आप मंदिर में दीपक....
उस का वाक्य पूरा होने से पहले बडे ने कहा 'ठीक है'
बडे ने दीप प्रज्वलित करने के लिये मंदिर का दरवाजा खोला। खोलते ही उस की नजर एक कटोरी पर पडी। लेकिन उसने उसे अनदेखा कर के दीप प्रज्वलित करने पर ध्यान दिया।
दीप प्रज्वलित करने के बाद बडे ने पत्नी से पूछा 'ये कटोरी में क्या है?'
पत्नी बोली 'अरे हां, मैं आप को बताना भूल गयी। देवर जी कुलदेवी का प्रसाद लाये हैं। लेकिन कटोरी में वही है...और अश्रु गंगा बह निकली।
*कुमार अहमदाबादी*
वो गीत बप्पी लाहिरी ने गाया था। उस मूवी में संगीत बप्पी लाहिरी का था। मिथुन दा भी उसी मुवी से स्टार बने थे; बल्कि उस समय एक चर्चा ये भी चल पडी थी कि मिथुन की अगर एसी दो चार हीट आ गयी; तो बच्चन की सुपरस्टार की कुरसी गयी समझो।
सुरक्षा के अन्य गीत भी अच्छे थे। लेकिन शिरमौर था मौसम है गाने का
उस के बाद कयी वर्षों तक मिथुन के लिये बप्पी दा ने ही प्ले बेक दिया। दरअसल बात कुछ यूं थी कि किशोर कुमार ने मिथुन के लिये गीत गाने से मना कर दिया था; क्यों कि मिथुन का किशोर कुमार की तलाकशुदा पत्नी से रोमांस व शादी की अफवाहें चल रही थी। हालांकि मिथुन ने बाद में योगिता बाली से शादी की।
इसलिये बप्पी दा मिथुन की ऑनस्क्रीन आवाज बने। उस से पहले भी बप्पी दा कुछ बेहतरीन सुरीले गीतों की रचना कर चुके थे। उन का एक गीत *चलते चलते मेरे ये गीत याद रखना, कभी अलविदा ना कहना, कभी अलविदा ना कहना* तो आज भी एक माइल स्टोन है; और सदा माइल स्टोन रहेगा।
उस समय तक के हीट गीतों में कुछ और यादगार गीत है *बंबई से आया मेरा दोस्त....* है: इस के अलावा जख्मी मूवी के *जलता है जिया मेरा भीगी भीगी रातों में, आओ तुम्हें चांद पे ले जायें* *अभी अभी थी दुश्मनी अभी है दोस्ती* : टूटे खिलौने का *माना हो तुम बेहद हंसी* है। 1979 में प्रदर्शित लहू के दो रंग मूवी के गीत *माथे की बिंदिया बोली काहे को गोरी* *चाहिये थोडा प्यार थोडा प्यार चाहिये* *मुस्कुराता हुआ गुनगुनाता हुआ मेरा यार* । ये सारे गीत बहुत सफर व लोकप्रिय हुए थे।
*और फिर आये 1982-83 के वर्ष,*
यहाँ से बप्पी दा की करियर जैसे छलांग लगाई।
अमिताभ बच्चन की नमक हलाल के गीत *आज रपट जईयो* को कौन भूल सकता है।
लेकिन सब से महत्वपूर्ण आज भी जिस की सफलता के चर्चे होते हैं वो थी *हिम्मतवाला*
इस मूवी से बप्पी दा की करियर ने एसा जम्प लगाया की हर तरफ घर घर गली गली उन के गीत गूंजने लगे।
हिम्मतवाला के साथ उसी वर्ष बाद में आयी। जस्टीस चौधरी, तोहफा के गीतों ने बप्पी दा को सफलता की नयी ऊंचाइयों तक पहुंचाया।
दरअसल,
उस समय एक एसी टीम बनी थी। जो सफलता की गारंटी थी। बप्पी दा उस टीम के महत्वपूर्ण सदस्य थे। हिम्मतवाला से कादरखान, शक्तिकपूर, श्रीदेवी, अमजदखान तथा कुछ और कलाकारों व टेक्नियनों की टीम बनी थी।
अगले आठ दस वर्ष इस टीम के सदस्यों ने खूब सफलता पायी। बप्पी लाहिरी के कयी गीत माइल स्टोन बन गये।
और फिर, जो शुरु होता है। उस का कहीं न कहीं अंत भी होता है। करियर के आखिरी वर्षों में भी बप्पी दा ने *सिल्क* ( एसा कहा जाता है कि सिल्क मूवी साउथ की डांसर सिल्क स्मिता के जीवन पर आधारित है) मूवी में *उलाला उलाला* हीट गीत कम्पोज किया था।
अब बप्पी दा अनंत की यात्रा पर रवाना हो गये हैं।
परमात्मा बप्पी दा की आत्मा को मोक्ष प्रदान करें
कुमार अहमदाबादी
मनोविज्ञान रंग और उस के प्रभाव को जानता है; जानता है इसलिये बताता भी है। मनोविज्ञान कहता है प्रत्येक कुदरती रंग मानव के मस्तिष्क तक एक भाव, अर्थ एवं प्रभाव पहुंचाता है। वो प्रभाव मानव को दुनिया को घटनाओं को समझने में मदद करता है।
मैं पहले भी एक दो पोस्ट में कुछ रंगों के प्रभाव व उस के असर की बात लिख चुका हूँ। जैसे कि लाल रंग उग्रता, हरा रंग समृद्धि का, केसरिया रंग वीरता का, सफेद रंग शांति का, आसमानी रंग गहराई एवं विशालता का, पीला रंग कमजोरी का प्रतिक है।
आज बात करते हैं काले रंग की,
काला रंग अंधेरे का प्रतिक है। रात काली होती है। जो रात जितनी ज्यादा काली होती है। उतनी ही रहस्यमयी, भेदभरमवाली व विकराल होती है या लगती है। काले रंग का नकारात्मक शक्तियों से बहुत गहरा घनिष्ठ लगाव है। आप ने कयी किस्से कहानियों में पढा होगा। तांत्रिक अक्सर अमावस की गहरी काली रात को श्मशान में साधना करते हैं। आपने शायद इस पर भी गौर किया होगा। वे जब अपनी साधना आराधना पूजा या अपनी विधियां करते हैं: तब ज्यादातर तांत्रिक काले रंग के वस्त्र धारण कर के उपरोक्त सारी विधियां करते हैं।
एसा नहीं है कि काला रंग सिर्फ नकारात्मक या विध्वंसकता का ही प्रतीक है। कयी अन्य सकारात्मक कार्य भी काले रंग के प्रभाव के दौरान यानि जब अंधकार छाया हो; तब किये जाते हैं। जैसे की यौन कार्य एकांत में किये जाते हैं; और उस से महत्वपूर्ण सृजनात्मकत कार्य दूसरा कोई नहीं है। लेकिन एसे सकारात्मक कार्य बहुत कम हैं। जो काले रंग के प्रभाव यानि अंधकार में किये जाते हों।
आपने ये भी गौर किया होगा। चोर जब चोरी करने जाता है। तब अक्सर काले रंग के वस्त्र पहनकर या चेहरे पर काला नकाब बांधकर जाता है।
कयी पुरानी कहानियों में समुद्री लुटेरों को या डाकूओं को भी काला नकाब पहने हुये बताया गया है। इसी तरह कई बार व्यक्ति चोर न होते हुये भी काला नकाब पहनते हैं। काला लबादा ओढते हैं।
लेकिन आजकल इस काले नकाब का दुरुपयोग भी होने लगा है। कुछ शरारती लोग जो स्वभाव से विभाजनकारी हैं; कानून व्यवस्था को तोडने में अपनी शान समझते हैं। वे नकाब का दुरुपयोग करने लगे हैं।
वीर वो होता है। जो हमेशा खुली लडाई लडता है। दूसरी तरफ कायर कभी खुली लडाई नहीं लडता। जो अपने हक के लिये लडता है और जिसे अपनी लड़ाई सच्ची होने का विश्वास होता है। वो कभी मुंह छुपाकर नहीं लडता। मुंह छुपाकर वो लडता है। जिस की नियत में खोट होती है।
जो अपना मुंह छुपाना चाहता है। उस की नियत में कहीं न कहीं गलत इरादे छुपे होते हैं। जिस के इरादे गलत नहीं होते। वो कभी भी मुंह नहीं छुपाता; तथा किसी भी तरीके से अपनी पहचान नहीं छुपाता।
महेश सोनी
युग बदल चुका है
पर कुरुक्षेत्र में आज भी
सत्य और असत्य दोनों में
युद्धोन्माद छाया हुआ है
लेकिन आज के अर्जुन के सारथी
कृष्ण नहीं है
आज सारथी वो गीता है जो
कृष्ण ने अर्जुन को सुनायी थी
वो गीता आज के
आज के कौरवों को
हणने के लिये आह्वान कर रही है
कौन है आज के कौरव?
बल्कि आज के अर्जुन के शत्रुओं को कौरव कहने से
कौरवों का अपमान होगा
कैसे?
वो एसे की
कौरव अपनी स्त्रियों का चेहरा ढककर
उन्हें कुरुक्षेत्र में नहीं लाये थे
कुमार अहमदाबादी
जब कोई जीव इच्छित लक्ष्य
प्राप्त नहीं कर सकता
तब वो लक्ष्य प्राप्त न करने की खिज
किसी और तरीके से निकालता है
जिसे अलंकारिक भाषा में एक कहावत
खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे
कहकर व्यक्त किया जाता है
लगता है आजकल कुछ एसा ही हो रहा है
कानूनों को रोक ना पाये इसलिये अब
खंभे नोच रहे हैं
कुमार अहमदाबादी
जडतर कलाकार जानते है
नौलखा हार क्या होता है
कैसे बनता है व कैसे बनाया जाता है
जेवर निर्माण की सब से विशेष प्रक्रिया है
विभिन्न रंग के नगीनों को डिजाइन के अनुसार
जरुरत के अनुसार रंग पोतकर
उन के उचित स्थानों पर चिपकाना, और
इस तरह चिपकाना की नगीने टूटे नहीं
एवं आगे के कार्य में भी तकलीफ हो नहीं
एक विशिष्ट कला है
बस उसी तरह
जीवन रुपी जेवर में संबंध रुपी नगीनों को
अर्थात
बडे छोटे या पास दूर के संबंधों को
पारिवारिक नक्शे यानि डिजाइन को ध्यान में रखकर
उष्मा या शुष्कता से निभाना
और, इस तरह निभाना की
संबंध टूटे नहीं, कलाकारी है
जो इस कला में निपुण हो गया, समझो
जीवन उस का नौलखा हार बन गया।
कुमार अहमदाबादी
मैं सिर्फ लाल रंग का डिब्बा नहीं हूँ। भावनाओं का वाहक हूँ। संसार के नियम जो आयेगा। वो जायेगा के अनुसार मेरे जीवन के आखिरी वर्ष या महीने या फिर शायद दिन चल रहे हैं।
दुनिया जब से बनी है। डाक यानि पत्रों का आना जाना किसी न किसी रुप में किसी न किसी माध्यम के द्वारा होता रहा है। इंसानों के अलावा जानवरों और पक्षियों ने विशेष रुप से कबूतरों ने भी पत्र वाहक का कर्तव्य निभाया है।
बस इसी पत्रों के आवागमन को सुचारु रुप से करने के लिये मुझे जन्म दिया गया यानि मेरा आविष्कार किया गया।
पहला सार्वजनिक पत्रवाहक डिब्बा यानि लेटर बोक्स वर्ष ई.स. 1848 में रशिया के सेन्ट पीटर्सबर्ग शहर में रखा गया था। कुछ लोग ये भी कहते हैं कि ई.स. 1842 में पोलेन्ड देश के वोर्सो नगर में सब से पहला पोस्ट बोक्ष रखा गया था। कुल मिलाकर 1840 के दशक में हमारा उपयोग शुरु हुआ। हम अमरीका में ई.स. 1850 के दशक में सार्वजनिक रुप से काम करने लगे थे। हमारी रुप रेखा यानि आकार का निर्माण एन्थनी ट्रोलोप ने किया था।
ज्यादातर देशों में हम लाल रंग के होते हैं। इस का कारण है। लाल रंग बहुत दूर से दिखायी देता है। चूंकि हम जनभावनाओं से बहुत ही गहरे रुप से जुडे हैं। हम पत्रवाहकों को जल्दी दिखायी देने चाहिये ना, इसीलिये ज्यादातर देशों ने हमें लाल रंग में रंगा। वैसे लाल रंग से एक दूसरा मुद्दा भी याद आया। दुनिया में एक एसी विचारधारा भी जन्मी है। जिसे लाल रंग के साथ जोडा गया है।
बहरहाल, वापस मेरी कहानी पर आता हूँ।
एसा माना जाता है। भारत में डाक सेवा 1 अक्तूबर 1854 के दिन आरंभ हुयी थी। डाक विभाग सादा पोस्ट कार्ड, अंतरदेशीय पत्र, तार यानि टेलिग्राम व रजिस्टर्ड पत्र एवं पार्सल सेवा द्वारा अपना कर्तव्य निमाता था व कुछ रुप में आज भी निभाता है। हालांकि आज तार सेवा बंद हो गयी है। चलती कलम आप को ये भी बता दूं। ईस्वीसन 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अंग्रेजों ने हमारा बहुत उपयोग किया था। उस समय तार सेवा नयी नयी थी। वो सेवा सिर्फ अंग्रेज सरकार के पास थी। त्वरित सेवा थी। इसलिये क्रांतिकारीयों के पास तार की सेवा नहीं थी। जिस से वो संदेशे जल्दी भेज सकें।
समय बीतता गया, बीतता गया। समय के साथ नये साधन आने के बाद हमारा उपयोग कम होता गया। अब तो बहुत कम काम रह गया है।
जब पीछे मुडकर देखता हूँ तो आत्मसंतोष से भरी एक मुस्कान चेहरे पर आ जाती है। हम हर तरह के साहित्य का हिस्सा बने है।
ये आखिरी वाक्य लिखकर पत्र समाप्त करता हूँ कि,
डाकिया डाक लाया, डाक लाया..................
*कुमार अहमदाबादी*
व्यक्ति जब आयु में छोटा होता है। उस समय एक महत्वपूर्ण घटना होती है। वो ये की वो किसे अपना आदर्श मानता है। किस के जैसा बनना चाहता है। अक्सर ये होता है कि व्यक्ति जिसे आदर्श मानता है। उस आदर्श के जैसा बनना भी चाहता है। हालांकि वो ये ध्यान रखना चाहता है कि आदर्श व्यक्ति के गुण ही अपनाए। लेकिन वैसा होता नहीं है। होता ये है कि आदर्श के गुण अवगुण कम ज्यादा मात्रा में आदर्श माननेवाले के स्वभाव में आ जाते हैं।
इसे मैं अपने पर लेकर कहूँ तो,
यूँ समझिये,
मैंने बचपन में सुनील गावस्कर, कपिलदेव, अमिताभ बच्चन को अपना आदर्श माना। आदर्श मानने के बाद उन तीनों के वो गुण थोडे बहुत प्रमाण में मेरे स्वभाव में आ ही जायेंगे। जो मुझे अच्छे लगे। जैसे गावस्कर का गुण है पररफेक्ट डिफेन्स एवं वाकचातुर्य।
गावस्कर जब क्रिकेट की तकनीक से संबंधित कोई बात कहते हैं तो कोई उस में नुक्स नहीं निकाल सकता। गावस्कर का दूसरा महत्वपूर्ण गुण है वाकचातुर्य यानि बात कहने की, पेश करने की कला। एसा नहीं के समान हुआ है कि गावस्कर द्वारा कही गयी किसी बात या मुद्दे की किसीने गलत कहा हो।
तो, जो आदमी गावस्कर को आदर्श मानेगा। उस व्यक्ति में अपने आप गावस्कर के गुण कम या ज्यादा प्रमाण में आने लग जायेंगे।
इसी तरह अमिताभ बच्चन के व्यक्तित्व को देख लीजिये। अमिताभ के खुद के जीवन में वैसी घटना घटी। जैसी वो फिल्मों में निभाते थे।
अमिताभ ने फिल्मों अक्सर एसे इंसान का रोल निभाया है। जो जमाने द्वारा सताया गया, पीडीत किया गया। लेकिन परदे पर नायक के तौर पर अमिताभ प्रत्येक विघ्न को पार कर के या पीछे छोडकर विजेता बनकर निकले। दूसरे शब्दों में कहें तो हरेक विघ्न को पार कर के किनारे पर पहुंचे।
अमिताभ के निजी जीवन में भी यही हुआ। फिल्मों में हीरो बनने की उमर निकलने के बाद एंटरटेनमेंट कंपनी बनाई तो उस में बहुत बडा घाटा खाया। घर बार नीलाम होने की तैयारी हो गयी। लेकिन अमिताभ फिल्मों के नायक की तरह परिस्थितियों से जूझकर आर्थिक फिर खडे हुये।
तीसरे हैं कपीलदेव
सीधा सरल निश्छल और देशप्रेम से भरा व्यक्तित्व
एसा व्यक्ति जिसने अपनी काबिलियत से देश के क्रिकेट इतिहास में एसे पन्ने लिखे। जिस के बारे कभी किसी ने सोचा तक नहीं था। कपिलदेव से पहले भारत के क्रिकेट इतिहास में एसा कोई तेज गेंदबाज आया नहीं था। जिसे खेलने के लिये विदेशी बल्लेबाजों ने हेल्मेट पहना हो। कपिलदेव से पहले किसी तेज गेंदबाज ने भारत को टैस्ट मैच जिताया नहीं था। कपिलदेव के आने के बाद आज एसी परिस्थिति है कि भारत का तेज गेंदबाजी का आक्रमण विश्व के श्रेष्ठ आक्रमणों में से एक है।
सुनील गावस्कर के आने से पहले ये माना जाता था। भारत के बल्लेबाज तेज गेंदबाजी को सही तकनीक व अच्छी तरह से खेल नहीं सकते। सुनील गावस्कर ने क्या किया? सुनील गावस्कर ने विश्व के एक से एक लाजवाब तेज गेंदबाजों को हेल्मेट पहने बगैर खेला। उस पर सोने में सुहागा ये कि जिस टीम के पास एक से बढकर एक बेहतरीन तेज गेंदबाज थे। उस वेस्ट इंडीज के विरुद्ध सब से ज्यादा सफलता प्राप्त की। वेस्ट इंडीज के विरुद्ध तीन दोहरे शतक बनाये। वेस्ट इंडीज के विरुद्ध एक टेस्ट मैच की दोनों पारियों में शतक बनाने का पराक्रम दो बार किया।
क्रिकेटरों की जो पीढी गावस्कर को देखकर बडी हुयी। उस में गावस्कर वाले क्रीज पर जम जाने के और बडे बडे स्कोर बनाने के गुण आ गये। गावस्कर को आदर्श माननेवाले कयी बल्लेबाज मिले। जिन में सब से ज्यादा सफल सचिन तेंदुलकर हुये।
इसलिये जीवन में आदर्श होना जरुरी है। साथ ये भी याद रखना चाहिये। हम किसे हम आदर्श मानें? बहुत सोच समझकर आदर्श को पसंद पसंदगी करना चाहिये।
आप जैसा आदर्श पसंद करोगे। वैसे ही बनोगे।
*महेश सोनी*
पत्नी ने हल्दीवाला दूध बनाने के लिये दूध को भगोने में डालकर भगोना गैस के चूल्हे पर रखा। गैस चलाया। दूध थोडा गरम होने पर उस में चीनी डाली। मसाला बोक्स खोला और चपटी भर कर हल्दी डाल दी।
लेकिन अगले ही पल ट्यूबलाइट जली। मैंने हल्दी के बदले......
मन ने कहा दूध को यूं ही बहा देना चाहिये। पर इतना सारा दूध यूं ही बहाने के लिये मन नहीं माना। सोचा जो होगा देखा जायेगा।
गरम होने पर एक कप में डालकर दूध चखा।
उस के बाद उस दूध को बडे ग्लास में भरकर पतिदेव को पीने के लिये दे दिया। बोली कुछ भी नहीं। वो कम्प्यूटर पर अपना काम कर रहे थे। उन्होंने ग्लास हाथ में लिया और गटागट पी गये। ग्लास मुझे वापस थमा दिया।
मैंने ग्लास लिया और चुपचाप वहां से खिसक गयी। सचमुच पतिदेव बहुत भोले हैं। उन्हें पता ही नहीं चला की दूध में हल्दी नहीं हींग थी।
अनुवादक - कुमार अहमदाबादी
भारत एक सांस्कृतिक पुष्पगुच्छ है। जिस में भांति भांति के पुष्प सजे हैं। सारे पुष्पों को देखें तो एसा लगता है। वे अपने आप में एक एक इंद्रधनुष को समाये हुये हैं; और आप तो जानते ही होंगे।
इंद्रधनुष में सात रंग होते हैं; सात रंग जो जीवन के हर भाव को उतार चढाव को, लोक संस्कृति को इतिहास को तथा और न जाने क्या क्या समेटे हुये हैं। कश्मीर की केसर और पंजाब के भंगडा से दक्षिण के कथकली एवं पश्चिम के रण एवं गरबों से लेकर पूर्व के मणिपुरी नृत्य एवं आसाम के बीहू तक न जाने कितनी संस्कृतियां सांस लेती है न जाने कितने उत्सव झूमते हैं गाते है। ये सब एसे पुष्प है जो सदियों से विश्व को सुगंधित कर रहे है। ये सब तो सांस्कृतिक पुष्पगुच्छ में हाजिर चंद पुष्पों की विशेषताएं हैं।
सब की विशेषता को शब्दों से सजाने लगें तो, शब्द कम पड जायेंगे।
लेकिन,
भारत रुपी सांस्कृतिक पुष्पगुच्छ के पुष्पों की विशेषता बतानी बाकी रह जायेगी। इसलिये आप के पास जो पुष्प है आप उस की सुगंध का आनंद लीजिये। आप को आनंदरस पीता देखकर समय आप को समय समय पर प्रत्येक पुष्प के रंग रुप और सुगंध से झर रहे आनंदरस को पीने का अवसर देगा।
कुमार अहमदाबादी
क्रांति की लौ को जलानेवाली है
हाथ में बंदूक आनेवाली है
भूख दो रोटी की थी जो ना मिली
रक्तगंगा वो बहानेवाली है
ये पतीली खाली थी एवं है पर
दाल पूरी बस'ब आनेवाली है (बस अब)
रोटी मजदूरों के हक की छीन मत
देश का कल ये सजानेवाली है
भूख को बस लक्ष्य दिखता है 'कुमार'
भूख अब मंजिल को पानेवाली है
कुमार अहमदाबादी
बेटा,
यहां से घर जाते ही कुछ खा लेना।
आज सुबह से
यानि
मेरी आखिरी सांस के बाद
तूने कुछ नहीं खाया है
चिता पर सोयी
माता के मन के भाव पढकर
ब्रह्माण्ड रो पडा।
कुमार अहमदाबादी
अपने कक्ष में देवी सरस्वती गुमसुम और उदास बैठी है। सितार को उन्होंने एक तरफ संभालकर रख दिया है। बहुत मुश्किल से अपने आसुओं को रोक रही है। एसे में नारायण नारायण का उच्चारण करते हुये नारदमुनि प्रवेश करते हैं। देवी सरस्वती नारद मुनि को मौन होने के लिये कहती है,
देवी सरस्वती - नारद जी, आइये, आप को एक कार्य करना है। स्वागत की तैयारी करनी है।
नारद जी - किस के स्वागत की तैयारी करनी है माते?
देवी सरस्वती - आज मेरी पुत्री पृथ्वी पर सरगम का अश्वमेघ यज्ञ पूर्ण कर के वापस लौट रही है। जाओ उस के स्वागत की तैयारी करो।
नारद जी - आप की आज्ञा का पूर्णतः पालन होगा माते।
नारद जी स्वागत की तैयारी करने लगते हैं।
कुछ पल बाद का दृश्य
माता सरस्वती और पुत्री लता मंगेशकर गले मिली हुयी है। दोनों की आंखों से गंगा जमना बह रही है।
माता सरस्वती- बेटी, मैं क्या कहूँ, मुझ से तूने जो पाया था, जितना पाया था। उस का कयी गुना तू पृथ्वीवासियों को देकर आयी है। मुझे ही नहीं विश्व की सारी माताओं को इस सत्य पर गर्व होगा की बेटियां भी परिवार का नाम रोशन करती है।
कुमार अहमदाबादी
सप्त मिले पंच में
पंच मिलेंगे ब्रह्म में
ब्रह्म मिलेगा अनंत में
अनंत कहां और किस में
जाकर मिलेगा?
कुमार अहमदाबादी
आज इस पल इस घडी
स्टूडियो सिसक रहा है
सितार चौधार आंसू बहा रही है
तबले के आंसू सूख गये हैं
वायोलिन को होश में लाने के प्रयास स कौन करे?
ढोलक गुमसुम है
वीणा स्तब्ध है, पखवाज सदमे में है
माइक मौन साधे खडा है
हां,
इन सब की आंखों में जो
अपने परिवार के सदस्य से बिछडने की वेदना है
वो भी अपने आप को भावुक होने से रोकने में असमर्थ है
कुमार अहमदाबादी
अपने कक्ष में देवी सरस्वती गुमसुम और उदास बैठी है। सितार को उन्होंने एक तरफ संभालकर रख दिया है। बहुत मुश्किल से अपने आसुओं को रोक रही है। एसे में नारायण नारायण का उच्चारण करते हुये नारदमुनि प्रवेश करते हैं। देवी सरस्वती नारद मुनि को मौन होने के लिये कहती है,
देवी सरस्वती - नारद जी, आइये, आप को एक कार्य करना है। स्वागत की तैयारी करनी है।
नारद जी - किस के स्वागत की तैयारी करनी है माते?
देवी सरस्वती - आज मेरी पुत्री पृथ्वी पर सरगम का अश्वमेघ यज्ञ पूर्ण कर के वापस लौट रही है। जाओ उस के स्वागत की तैयारी करो।
नारद जी - आप की आज्ञा का पूर्णतः पालन होगा माते।
नारद जी स्वागत की तैयारी करने लगते हैं।
कुछ पल बाद का दृश्य
माता सरस्वती और पुत्री लता मंगेशकर गले मिली हुयी है। दोनों की आंखों से गंगा जमना बह रही है।
माता सरस्वती- बेटी, मैं क्या कहूँ, मुझ से तूने जो पाया था, जितना पाया था। उस का कयी गुना तू पृथ्वीवासियों को देकर आयी है। मुझे ही नहीं विश्व की सारी माताओं को इस सत्य पर गर्व होगा की बेटियां भी परिवार का नाम रोशन करती है।
कुमार अहमदाबादी
(अनुवादक - महेश सोनी)
हनुमान चालीसा की रचना कैसे व कब हुयी?
हनुमान चालीसा की रचना कैसे हुयी?
ये कहानी नही सत्यघटना है। ये बहुत कम लोगों को ये मालूम है।
हनुमान चालीसा गाकर सब पवनपुत्र हनुमान जी की आराधना करते हैं। लेकिन इस को रचना के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं।
तुलसीदास जी के जीवन में घटना है। उस समय यानि इ.स. 1600 की घटना है।
एक बार तुलसीदासजी मथुरा जा रहे थे। रात घिरने लगी थी। उन्होंने उस दिन आग्रा में ठहरने का निर्णय किया। जैसे जैसे लोगों को मालूम होने लगा की तुलसीदासजी मथुरा पधारे हैं। लोगों के समूह के समूह उन के दर्शन करने के लिये आने लगे।
अकबर को इस घटना का पता चलने पर उसने बीरबल को पूछा 'ये तुलसीदासजी कौन है?' बीरबल ने कहा 'वे रामभक्त हैं। उन्होंने रामचरितमानस की रचना की है। मैं भी उन के दर्शन कर के आया हूँ। तब अकबर ने भी उन के दर्शन करने की इच्छा व्यक्त की। अकबर ने सिपाहियों की टुकडी भेजी। उस के कप्तान ने वहां जाकर तुलसीदासजी को बादशाह का लाल किले में हाजिर होने का फरमान सुनाया। तुलसीदासजी ने कहा 'मैं रामभक्त हूँ। मुझे बादशाह या लाल किले से कोई मतलब नहीं है। मैं लाल किले में नहीं आउंगा।
सिपाहीयों द्वारा तुलसीदासजी का उत्तर सुनकर बादशाह को बहुत बुरा लगा। वो लालपीला हो गया। लालपीले होकर हुक्म दिया 'तुलसीदास जी को हथकडीयां पहनाकर लाल किले में लेकर आओ।'
तुलसीदासजी को हथकडियां पहनाकर लालकिले में लाया गया। अकबर ने तुलसीदासजी से कहा 'अगर आप चमत्कारी व्यक्ति हो तो कोई चमत्कार कर के दिखाइये।'
तुलसीदासजी ने कहा 'मैं तो भगवान रामचंद्र जी का भक्त मात्र हूँ। कोई जादूगर नहीं हूँ कि जादू के खेल या कोई चमत्कार कर के दिखाउं।' ये सुनकर अकबर क्रोधित हो गया। क्रोधित होकर फरमान जारी कर दिया कि 'इसे हथकडियां पहनाकर कालकोठरी में कैद कर दो'
दूसरे दिन आग्रा के उस लाल किले में न जाने कहां से सैंकडों की संख्या में बंदर आ गये। उन्होंने पूरे लालकिले को अस्तव्यस्त कर दिया। जैसी तबाही हनुमान जी ने अशोक वाटिका में मचायी थी। वैसी तबाही मचा दी। तबाही देखते हुये अकबर ने बीरबल से पूछा 'ये सब क्या हो रहा है?
बीरबल ने कहा 'हुजूर, आप को चमत्कार देखना था ना! देख लीजिये।'
अकबर ने तुरंत हुक्म देखर तुलसीदासजी को कालकोठरी से मुक्त कर दिया; बेड़ियां खोल दी। तुलसीदासजी ने बीरबल से कहा 'मुझ कोई अपराध किये बिना दंड मिला है। मैं उस कोठरी में श्री रामचंद्रजी और हनुमान जी का स्मरण कर रहा था। आंखों से अश्रु झर रहे थे। हनुमान जी की प्रेरणा से मेरी कलम अपने आप चलने लगी थी। हनुमानजी की प्रेरणा से ही चालीस चौपाईयां लिख दी है।
जो भी व्यक्ति संकट या पीडा में होगा। वो जब इस का पाठ करेगा। उस के सारे संकट सारी पीडा दूर हो जायेंगे। इसे हनुमान चालीसा कहा जायेगा।
अकबर बहुत शरमिंदा हुआ। उसने तुलसीदासजी से माफी मांगी। उन्हें पूरे मान सम्मान और सैन्य के पहेरे के मथुरा की ओर साथ विदा किया।
हनुमान जी इसीलिये संकटमोचन कहे जाते हैं। आज सब हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं।
बोलो जय श्री राम
बोलो श्री हनुमान दादा जी की जय हो
अनुवादक - महेश सोनी
जिंदगी में कभी
प्यासा होने का सुख भोगा है
तुम सोचोगे! प्यासा होने का सुख
प्यास का ना मिटना भी एक सुख देता है
ये सुख का एसा पौधा है
जो अतृप्ति के आंगन खिलता है
जिस पर छटपटाहट के फूल लगते है
आंसू जेठ की तपती दोपहरी बन जाते है
और मन?
एसा रेगिस्तान बन जाता है
जिस में दूर तक पानी की एक बूंद दिखायी नहीं देती
पानी बूंद हा हा, हाहाहाहा
पानी बूंद सही समय पर सही जगह पर बरस जाये
तो रेगिस्तान का सृजन ही नहीं होता
पर अफसोस
हर जगह बूंद नहीं बरसती
इसलिये धरा अतृप्त ही रह जाती है
और प्यास को भी सुख समझ लेती है
कुमार अहमदाबादी
अनुवादित (अनुवादक - महेश सोनी)
अनुवादक - महेश सोनी
जब छोटे थे तब खिचडी खाते थे। मुझे याद है कयी बच्चे खिचडी के नाम से चिड जाते थे। लेकिन अंदाजा नहीं था। खिचडी में इतने गुण है; इतनी शक्ति है।
कुछ वर्ष पहले प्राचीन भारत की विरासत को जानने में रुचि जागी। उस समय प्रकृति को देखने जानने की भी रुचि जगी थी। कुछ कुछ समझने भी लगे थे। विश्व में जंकफूड एवं फास्टफूड का बढ रहा मांग एवं उस आहार के कारण हो रही समस्या व नुक्सान के कारण मन द्रवित था। तब भारतीय आहार संस्कृति एवं पद्धति का अभ्यास शुरु किया था। । उस अभ्यास के दौरान खिचड़ी के बारे में जो मालूम हुआ। वो यहाँ पेश करता हूँ।
जूनागढ़ कृषि यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर गोलकिया साहब के साथ मिलकर खिचडी के बारे में इधर उधर से जानकारी प्राप्त करने के बाद वडोदरा की एम. एस. यूनिवर्सिटी के साथ खिचड़ी के बारे में संशोधन करने पर मालूम हुआ। खिचड़ी 'गरीब' या 'बेचारी' नहीं है; बल्कि धनवान है, अमीर है; वैभवशाली है।
दस हजार वर्ष पहले भी खिचडी थी। ऋषि-मुनि भी खिचड़ी की हिमायत करते थे एवं आयुर्वेद भी खिचड़ी की हिमायत करता है। मग व चावल दोनों अति पवित्र व शक्तिशाली होते हैं।
खिचड़ी शुभ एवं पवित्र आहार है; वो माता के दूध जैसी पवित्र है। देवी देवों को भी खिचड़ी पसंद है, प्यारी लगती है। खिचडी में अपार व अमाप गुण है। ये सिर्फ चार घंटों में पच जाती है। खिचड़ी खाने से मन निर्मल होता है।
भारत में कहावत है ना 'जैसा अन्न वैसा मन'
मग व चावल की खिचडी में गाय का घी मिलाकर बल्कि उस घी को मथकर खाना शरीर और मन के लिये फायदेमंद यानि गुणकारी रहता है।
समझा एवं कहा जाता है कि भारत में अगर जंकफूड के बदले खिचड़ी खाने का प्रचलन बढ़ जाये तो स्वास्थ्य संबंधित कई समस्याओं का समाधान हो सकता है। बीमारीयां कम हो सकती है। लोगों के तन मन स्वस्थ स्वस्थ रह सकते हैं। यहां तक की आत्महत्याएं भी घट सकती है। किवदंति यह भी है कि खिचडी से मोक्ष भी मिल सकता है।
ब्रह्म खिचड़ी में विविध प्रकार की सब्जियां होती है। जिस से भोजन करनेवाले को संतोष एवं तृप्ति की अनुभूति होती हैं। खिचड़ी का एक प्रकार पुदीने की खिचड़ी है। जो कई रोगों को मिटाती है। इस के अलावा विभिन्न स्वाद की खिचड़ी बनती है। इस विषय पर भी संशोधन किया गया है कि बच्चों को खिचडी के प्रति आकर्षित कैसे किया जाये। बच्चों में खिचड़ी खाने की रुचि को कैसे जगाया जाये। एक प्रयोग चीज़ खिचडी का भी किया गया है।
हमारे कयी वानगीयां विशिष्ट है। देशी हांडवा पांचसौ(500) वर्ष पुराना है। कयी प्रकार की चटनियां बनती है। इन सब में भरपूर मात्रा में पोषक तत्व होते हैं। कहा जाता है खिचड़ी में सोलह(16) प्रकार के पोषक तत्व होते हैं। उस में एनर्जी (280 कैलरी) प्रोटीन (7.44) ग्राम, कार्बोहाइड्रेट (32 ग्राम) टोटल फेट (12.64 ग्राम) डायेटरी फाइबर (8 ग्राम) विटामीन ए (994.4 आइयु) विटामिन बी 6 (0.24 मिलीग्राम) आर्यन (2.76 मिलीग्राम) सोडियम (1015.4 मिलीग्राम) पोटेशियम (753.64 मिलीग्राम) मेग्नेशियम (71.12 मिलीग्राम) फॉस्फरस (148.32 मिलीग्राम) और जिंक (1.12 मिलीग्राम) होते हैं।
एम.एस. यूनिवर्सिटी के फूड और न्यूट्रीशन विभाग द्वारा भूतकाल में खिचड़ी में पाये जानेवाले पोषक तत्वों का विश्लेषण किये जाने पर उपरोक्त जानकारी मिली थी।
अगर खिचडी को मिट्टी के बर्तन में पकायी जाये तो उस के गुण और स्वाद बढ जाते हैं। एसा कहा जाता है कि पुराने समय में लोग मिट्टी के बर्तन में ही खिचडी बनाया करते थे।
तैतरिय उपनिषद के एक श्लोक के अनुसार "अन्न ब्रह्म है," क्यों कि अन्न से ही प्रत्येक प्राणी उत्पन्न होता है। उत्पन्न होने के बाद अन्न से ही जीवित रहता है। अंत में मृत्यु के पश्चात अन्न में ही प्रवेश कर जाता है।
भगवान श्रीकृष्ण ने भगवदगीता में कहा है कि, मैं मनुष्य के शरीर में जठराग्नि के रुप में बसता हूँ। उन्होंने ये भी कहा है कि आयुष्य, बल, आरोग्य, सुख और प्रित बढानेवाला, समस्या पैदा न करनेवाला, हृदय और मन को स्थिर रखनेवाला, मन को उद्वेलित न करनेवाला रसादार व चकनाईवाला आहार सात्विक मनुष्यों को प्रिय लगता है। हमारी खिचड़ी में ये सब गुण शामिल होते है।
वो समय बहुत जल्दी वापस आयेगा। जब लोग सत्य को जानकर समझकर भारतीय खाद्य पदार्थों और पद्धति की तरफ लौटने लगेंगे; कि अन्न ही ब्रह्म है। खिचड़ी उस में सर्वोत्तम है। लोगों द्वारा खिचडी में रुचि बढने के बाद स्वास्थ सुधार की प्रक्रिया भी आरंभ होगी। अभी हम बेशक खिचड़ी के महत्व से अंजान हैं। लेकिन जल्दी ये सत्य लोगों की समझ में आने लगेगा कि देश विदेश के चटाकेदार व्यंजनों से हमारी सरल सादी खिचड़ी लाख दरज्जे बेहतर है; श्रेष्ठ है।
एक तरफ करोडों युवक फास्टफूड खाकर अपने स्वास्थ्य को बिगाड़ रहे हैं। दूसरी तरफ खिचड़ी जैसे स्वास्थ्यप्रद स्वास्थ्यवर्धक भोजन से दूर रहकर अपना ही नुक्सान कर रहे हैं।
अनुवादक - महेश सोनी
प्यासी शाम और नयनों में आंसू
प्याले में मदिरा होठों पर मुस्कान
जब यादों के द्वार पय आओगे तुम
इन्हीं फूलों की माला पहनाउंगा
कुमार अहमदाबादी
खोने और पाने का चक्र
अविरत चलता रहता है
देखिये ना, मैंने यानि एक आत्मा ने
अलौकिक पंच तत्वों को छोडा तो
माता की कोख में स्थान पाया
कोख को छोडा तो संसार को पाया
संसार में बचपन को छोडा तो?
बचपन को छोडा तो जवानी पायी
जवानी को छोडा तो वृद्धावस्था को पाया
वृद्धावस्था को छोडा तो?
वृद्धावस्था को छोडा तो चिता को पाया
चिता को छोडूंगा तो वही पाउंगा
जिन्हें छोडकर संसार को पाया था
और संसार को क्या छोडकर पाया था?
वही अलौकिक असीमीत तत्व
पंचतत्व
ब्रह्माण्ड में यही चक्र है
जो निरंतर घूमता रहता है
ब्रह्माण्ड का चक्र
ब्रह्मचक्र
कुमार अहमदाबादी
प्यास जब विद्रोह करती है तब
सारे बंधन तोड देती है
उस समय उसे प्यास बुझाने के लिये
जो भी पानी मिले
स्वीकार कर लेती है
वो ये नहीं देखती कि
पानी कुएं का है या तालाब का
नदी का है या सरोवर का
कुमार अहमदाबादी
धीरे धीरे मर रहा हूँ मैं
एक बाद एक मेरे सारे अंग
निष्क्रिय हो रहे हैं
लेकिन मुझे खुशी है
मैं सही हाथों में था
अच्छे हाथों में था
मैं सदा सकारात्मक विचारों के साथ रहा
सकारात्मकता को बढाया
मैं भाग्यवान हूँ कि मुझे
एक साहित्यकार का साथ मिला
उसने मुझे डाकिया बनाकर
अपनी रचनाओं को शौकीनों तक पहुंचाया
लेकिन अब मेरे हृदय की गति
यानि की रेम बहुत धीमी हो गयी है
कयी अंग जैसे की यू-टयूब आदि
काम करना बंद कर चुके हैं
बस ये एक वॉट्स'प है
जो संपर्क साधे हुये है
जिस दिन ये...
समझो उस दिन
जिंदगी में कभी
प्यासा होने का सुख भोगा है
तुम सोचोगे! प्यासा होने का सुख
प्यास का ना मिटना भी एक सुख देता है
ये सुख का एसा पौधा है
जो अतृप्ति के आंगन खिलता है
जिस पर छटपटाहट के फूल लगते है
आंसू जेठ की तपती दोपहरी बन जाते है
और मन?
एसा रेगिस्तान बन जाता है
जिस में दूर तक पानी की एक बूंद दिखायी नहीं देती
पानी की बूंद हा हा, हाहाहाहा
पानी की बूंद सही समय पर सही जगह पर बरस जाये
तो रेगिस्तान का सृजन ही नहीं होता
पर अफसोस
हर जगह बूंद नहीं बरसती
इसलिये धरा अतृप्त ही रह जाती है
और प्यास को भी सुख समझ लेती है
कुमार अहमदाबादी
मैं चौथा शेर हूँ
जो अब तक सामने नहीं आया था
मैं सामने आना भी नहीं चाहता था
पर अब आना पड रहा है
चार शेर प्रतिक हैं
जीवन के चार आयाम
सत्य प्रेम करुणा और अहिंसा के
लेकिन विश्व के कुछ लोगों ने
अहिंसा को कमजोरी मान लिया है
वो भूल गये की
अहिंसा मैंने विश्व की शाति के लिये अपनायी थी
लेकिन अब जब
विश्व कयी जगह अशांति है
कुछ जानवरों को
बकरी होते हुये भी
शेर होने का वहम हो गया है
इसलिये
अब मुझे यानि चौथे शेर को
सामने आना होगा
और
इस अहिंसा शब्द का पूरा उपयोग छोडकर
बाराक्षरी के एक अक्षर को
कछ समय के लिये
सेवानिवृत करना होगा।
कुमार अहमदाबादी
देश के गणतंत्र दिवस की परेड में आखिरी बार हाजिर रहने के बाद कुछ ही देर पहले लौटा हूँ। वहां तो बहुत मुश्किल से अपने आंसू रोक सका था। लेकिन इस पल मेरी आंखे छलछला रही है; और क्यों ना छलछलाये? निवृति की आखिरी क्षणों में जब विश्व के सब से बडे गणतंत्र के प्रधानमंत्री सर पर हाथ रखकर सेवाओं को बिरदाए तो, आंखें क्यों ना छलछलाए?
माना की मैं जानवर हूँ। लेकिन हम जानवरों के सीने में भी दिल धडकता है। सीधी बात है कि जब दिल धडकता है तो भावनाएं भी जन्म लेती है। हमारी नसों में भी खून बहता है।
और मैं भाग्यवान हूँ कि मैंने भारत देश में जन्म लिया है। भारत जहां जानवरों को भी सम्मानित किया जाता है। जैसे मेरे सेवाकाल के दौरान मुझे किया गया है। मैं केवल दूसरा अश्व हूँ। जिसे चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ का कमान्डेशन कार्ड प्रदान किया गया है। मैंने अपने कार्यकाल में गणतंत्र दिवस की तेरह परेड देखी है। मैं जिस रेजिमेन्ट में था। वो सब से पुरानी है। मैंने इक्कीसवीं सदी के आरंभ के वर्षों में सेवा का आरंभ किया था। दो से ज्यादा राष्ट्रपतियों का कार्यकाल देखा है। समय कितनी तेजी से बहता है। मैं तब तीन वर्ष का था। जब सेवा शुरु की थी; और आज सेवा के आखिरी दिन देश के प्रधानमंत्री एवं अन्य गणमान्य मंत्रियों के लाड प्यार को पाने के बाद निवृत्त हुआ हूँ।
मैं ये सोचकर गदगद हूँ। मेरे निवृत होने के बाद भी मेरा खयाल रखा जायेगा। इसीलिये भारत महान है। इंसान तो इंसान यहां हम जानवरों का सम्मान किया जाता है, और सम्मान दिया भी जाता है। अब इस से पहले की आंसू छलछला जाये। आप से विदा लेता हूँ।
विराट( पीबीजी का सेवा निवृत अश्व)
काल्पनिक आत्मकथा)
लेखक - कुमार अहमदाबादी
(प्रस्तुत विचार मेरे हैं। ये आवश्यक नहीं प्रत्येक व्यक्ति इन से सहमत हो। सब की अपनी अपनी राय अपने अपने मत हो सकते हैं। मेरा ये दावा भी नहीं है कि यही सच है। )
- वस्त्रों का त्याग कर देना तानि पहनना छोड देना साधना नहीं है। किसी वस्त्रहीन को देखकर उस के लिये वस्त्र की व्यव्स्था करना साधना है।
- इसी तरह भोजन का त्याग करना; साधना नहीं है। किसी भूखे जीव के लिये भोजन की व्यवस्था करना साधना है।
- एक ही नाम या शब्द या श्लोक को निरंतर जपते रहना साधना नहीं है। उस नाम को जपते जपते वाणी के उच्चारण को एवं विचारों को स्पष्ट रुप से व्यक्त करने की कला को सीखना साधना है।
लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये निरंतर कार्य करते रहना साधना है।
- ये सीखते रहना की किसी भी कार्य को सुंदर तरीके से कैसे किया जाये, साधना है।
- किसी निराश हताश व्यक्ति को जीवन के प्रति तथा और किसी भी व्यक्ति को भी लक्ष्य प्राप्त करने के लिये प्रेरित करना साधना है।
- परमात्मा की मूर्ति के सामने बैठकर आरती धूप दीप करना विधियां है; साधना नहीं है। साधना वो है जब आप परमात्मा की मूर्ति के सामने या अकेले में या भीड में भी अकेले होकर परमात्मा के विचारों में खो जाओ; तथा इस विचार से कि परमात्मा ने आप पर कितनी कृपादृष्टि रखी है; आप की आंखों से झर झर आंसू झरने लगे: वो साधना है।
कुमार अहमदाबादी
(પ્રસ્તુત વિચાર મારા છે. આ જરૂરી નથી કે દરેક વ્યક્તિ આ વિચારો સાથે સંમત થાય. દરેકના પોત પોતાના મત અને વિચાર હોય છે. મારો આ પણ દાવો નથી કે આ જ સત્ય છે.)
- વસ્ત્રોનો ત્યાગ કરવો એ વસ્ત્ર પહેરવા છોડી દેવા એ સાધના નથી.
- ભોજનનો ત્યાગ કરવો પણ સાધના નથી. કોક ભૂખ્યા જીવ માટે ભોજનની વ્યવસ્થા કરવી એ સાધના છે.
- એક જ નામ કે શ્લોકનું લગાતાર રટણ કરવું એ સાધના નથી. વિચારો ને યોગ્ય શબ્દો દ્વારા યોગ્ય ઉચ્ચારણ દ્વારા વ્યવસ્થિત રીતે વ્યક્ત કરતા સીખતા રહેવું એ કલા સાધના છે.
- લક્ષ્યને પ્રાપ્ત કરતા સતત પ્રયાસ કરતા રહેવું સાધના છે.
- કોઈપણ કાર્યને સુંદર રીતે કેવી રીતે કરી શકાય. એના માટે પ્રયાસરત અને ચિંતન કરતા રહેવું, સાધના છે.
- જીવનથી નિરાશ હતાશ વ્યક્તિને જીવન પ્રત્યે અને અન્ય કોઈપણ વ્યક્તિને લક્ષ્ય પ્રાપ્ત કરવા પ્રેરણા આપવી એ સાધના છે.
- પરમાત્માની મૂર્તિની સામે બેસી આરતી કે ધૂપ દીપ કરવા એ સાધના નથી, વિધિઓ છે. સાધના એ છે જ્યારે આ વિચાર તમારા મનમાં આવે કે 'પરમાત્માની મૂર્તિની સામે કે એકલા બેઠા બેઠા પરમાત્માના વિચારોમાં ખોવાઈ જાઓ. પરમાત્મા એ તમને માનવ જીવન આપી. તમારા પર કેટદી કૃપા કરી છે અમીવર્ષા કરી છે, એવું વિચારી તમારી આંખોથી આંસુ અનરાધાર વહેવા માંડે, એ સાધના છે.
અભણ અમદાવાદી
अब तक मेरे पास मेरे आंगन में
जो भी आया लूटने के लिये आया
इस दुनिया के कुछ कुबुद्धियों ने
मुझे लूटने में और तोडफोड करने में
कोई कसर नहीं रखी
कोई तलवार लेकर आया तो कोई
व्यापारी बनकर आया
हां, एकाध बार एसा भी हुआ है कि
कोई विद्यार्थी बनकर आया
लेकिन
वो विद्यार्थी जो भी लेकर गया प्रेम से लेकर गया,
लेकिन आनेवालों दूसरों में से
कोई तलवार के जोर पर ले गया
तो
किसी ने सहायकारी योजना बनाकर लूट चलायी
सात समंदर पार से आये व्यापारीयों ने तो
न सिर्फ मुझे लूटा बल्कि
मेरे इतिहास को भी तोडा मरोडा
सदियों से चली आ रही
सारी व्यवस्थाओं को चौपट कर दिया
कला हुनर शिक्षा प्रणाली सब को तहस नहस कर दिया
लेकिन शेर बब्बरशेर
सोया हुआ सिंह जाग गया है
वो सिंह जाग गया है जिसे विश्व
अब तक देख नहीं पाया था
जो चार सिंहों के चिन्ह का
चौथा सिंह है
जो दिखता नहीं है
वो दहाडने का आरंभ कर चुका है
अब भारत फिर से
विश्व का नरेन्द्र बनने के पथ पर अग्रसर है
कुमार अहमदाबादी
इस मंदिर का निर्माण इ.स. 1338 मेअं विद्यारान्य नाम के ऋषि ने किया था। मंदिर में बारह(12) स्तंभ है। जो सनातन धर्म के बारह महीनों का प्रतिनिधित्व करते हैं। हरेक महीने की सुबह सूर्य की किरणें मंदिर में प्रवेश करती है। तब उस महीने का प्रतिनिधित्व करनेवाले स्तंभ से टकराती है। जिस से लोगों को महीने की जानकारी मिलती है।
(ये जानकारी मुझे वॉट्स'प पर मिली है। )
दो तीन दिन का भूखा शेरु सोसायटी के पीलर के पास बैठा था। खाने को खोज खोज कर थककर चूर हो गया था। सोसायटी में रहनेवाले भगवानदास को प्लास्टिक की एक थैली देते हुये उन की पत्नी ने कहा 'सुनो जी, ये बची हुयी ब्रेड दो तीन दिन की बासी हो गयी है। हम में से तो कोई खायेगा नहीं। आप नीचे जाकर कुत्ते शेरु को दे आइये। भगवानदास ब्रेड की थैली लेकर चल पडे। नीचे जाकर उन्होंने ब्रेड शेरु के आगे डाल दी। शेरु ब्रेड देखकर बढा। लेकिन ब्रेड के पास मुंह ले जाने के बाद तुरंत वापस घूमा लिया। मुंह घुमाने के बाद भगवानदास को देखने लगा। शेरु ने एसा दो तीन बार किया। तब भगवानदास को लगा। शेरु ब्रेड के बारे में कुछ कह रहा है। उन्होंने सारी ब्रेड को एक के बाद एक हाथ में लेकर देखा। कुछ ब्रेड कहीं कहीं से थोडी थोडी सडने लगी थी। भगवानदास समझ गये। उन्होंने जो जो ब्रेड सडी हुयी थी। उन का सडा हुआ हिस्सा तोडकर वापस प्लास्टिक की थैली में डाल लिया। बाकी ब्रेड शेरु के सामने रख दी। शेरु अपनी भूख मिटाने में व्यस्त हो गया।
कुमार अहमदाबादी
शमशान के आंगन में
झूले पर झूल रहा है
निर्दोष बचपन
परमात्मा भी कैसे कैसे
दृश्य दिखाता है इंसान को
कभी कभी सोचता हूँ
परमात्मा एवं विधाता
एसे दृश्य क्यों दिखाते हैं
क्या इसलिये की
इंसान को ये याद रहे कि
तुझे जो भी कर्म करने हैं
शमशान के द्वार के इस पार कर ले
बच्चों की तरह मन भर हंस ले
आनंद के उत्सव के झूलों पर झूल ले
और ये सब
तू तब तक कर सकेगा जब थक
तेरे अंदर एक बच्चा सांस लेता रहेगा
जिस दिन बच्चे ने सांस तोडी
सारे झूले टूट जाएंगे
और तू यहीं आयेगा
लेकिन
अपने पैरों पर नहीं
चार कंधों पर आयेगा
कुमार अहमदाबादी
जेठ की तपती दोपहरी में
मजदूर ने गेहूं की आखिरी बोरी
दुकान के सामने रखी
सेठ ने तुरंत केश बोक्ष में से
रुपये निकालकर उसे मजदूरी दे दी
मजदूरी जैसे ही मजदूर के हाथ में आयी
मजदूर के अंग अंग पर चांदी सा चमक रहा
पसीना थिरकने लगा।
कुमार अहमदाबादी
पति - मैं तुम्हें झगडने का कोई मौका नहीं दूंगा
पत्नी - मैं तुम्हारे दिये मौके की मोहताज नहीं हूँ
पति - ठीक है
पत्नि - क्या ठीक है?
पति - की तुम मौके की मोहताज नहीं हो
पत्नी - तो इस में तुम इतना खुश क्यों हो रहे हो?
पति - अरे, मैं कहां खुश हो रहा हूँ
पत्नी - खुश हो इसीलिये तो एक बार में मेरी बात मान गये; वर्ना तुम मेरी बात कब मानते हो?
पति -(बात खत्म करने के लिये) ठीक है। जो तुम कहो वही सही।
पत्नी - यानि मान गये की तुम मेरी बात मानते नहीं?
पति - मैंने तुम्हारी बात कब नहीं मानी?
पत्नी -अभी भी कहां मान रहे हो
पति - क्या नहीं मान रहा?
पत्नी - कि, तुम मेरी बात मानते नहीं। बोलो मानते हो?
(पति दुविधा में पड गया। हां कहे तो समस्या ना कहे तो समस्या)
(पहले ये देखते हैं कि हां कहने पर पत्नी क्या कहती है
पति - हां मानता हूँ तुम्हारी बात
पत्नी - परसों मैंने मेरी पसंद की एक साडी लाने के लिये कहा था तब मानी थी मेरी बात!?
(पति समझ गया कुछ भी बोलने में खतरा है सो चुप रहा)
दो मिनिट बाद पत्नी बोली - देखा, साडी की बात से कैसे सांप सूंघ गया मेरे भोले बाबा को
पति- तो मैं क्या बोलूं?
पत्नी - ये नहीं कह सकते थे। लोकडाउन खुलने दो। तुरत दिला दूंगा।
पति - (फिर बात खत्म करने के लिये) ठीक है, लॉकडाउन खुलने दो दिला दूंगा साडी।
पत्नी - हां, अभी तो हां कहोगे ही। जानते हो लॉकडाउन है कहीं जा नहीं सकते। वादा करने में क्या दिक्कत है।
पति - अरे मैंने एसा नहीं सोचा था
पत्नी - और एसा कभी सोचना भी मत
पति - ठीक है नहीं सोचूंगा।
पत्नी - क्यों? क्यों नहीं सोचोगे! अच्छा समझी, तुम दुनिया को ये बताना चाहते हो कि, तुम तो बेहद मासूम और भोले हो। मैं ही झगडालू हूँ ।
पति - अरे, मैंने एसा कब सोचा?
पत्नि - तो अब सोच लो। लॉकडाउन चल ही रहा है। तुम्हारे पास तो समय समय ही समय है। मुसीबत तो हम औरतों की आई हुयी है।
पति - क्या मुसीबत आयी है?
पत्नी - और नहीं तो क्या, बैठे बैठे हुकम चलाते रहते हो। आज सुबह वो सब्जी बना लेना, शाम को वो सब्जी बना लेना।
पति - ठीक है मत बनाना
पत्नी - ताकि तुम बाहर जाकर कह सको कि मेरी पत्नी मेरा कहा नहीं मानती!
पति - अरे यार हद हो गयी, कुछ भी बोलूं उल्टा ही मतलब निकालती हो। आखिर तुम चाहती क्या हो?
पत्नी - बस इसी तरह लॉक डाउन में टाइम पास करवाते रहो
पति - आप का आदेश स्वीकार है
पत्नी - 😀😀😀😀😀 चाहती तो हूँ कि इस आदेश पर भी टाइम पास करूं लेकिन क्या करूँ । आप का खयाल आ गया।
पत्नी - इस से ज्यादा आप सहन नहीं कर पायेंगे।
पति - 😨
*कुमार अहमदाबादी*
હું ધાબા પર ઉભો'તો
અચાનક એક વૃદ્ધ કબૂતર મારી પાસે આવ્યું
મારી પાસે બેસીને મારી સાથે વાતોએ વળગ્યું
વાતો હતી બદલાતા સમયની
સમયની સાથે
બદલાતા ફેશનની
બદલાતા જીવન મુલ્યોની
એણે બહુ વાતો કરી
પણ, એની એક વાત
મારા હૃદયને સ્પર્શી ગયી
અને મને વિચારતો કરી મુક્યો
સાચું કહું તો
એ વાતે
મનમાં ખળભળાટ મચાવી દીધો
એણે ફરિયાદ કરી હતી કે તમે માણસોએ
અમને બેરોજગાર કરી દીધાં છે
તમે આજકાલ અમને
ટપાલ પહોંચાડવાનું કામ કેમ નથી સોંપતા?
અભણ અમદાવાદી
मैं छत पर खडा था
अचानक एक बूढा कबूतर मेरे पास आया
आकर वो बातें करने लगा
बातें थी बदलते समय की
बदलते फैशन की
समय के साथ
परिवर्तित हो जाते सिद्धांतों की
उसने बहुत बातें की
लेकिन उस की एक बात
मेरे दिल को छू भी गयी
और झकझोर भी गयी
उसने शिकायत की थी
आजकल तुम इंसानों ने
हमें बेरोजगार कर दिया है
आपने हमें डाकिया बनाना क्यों छोड दिया?
कुमार अहमदाबादी
कसम भवानी की,
जिस माली को हम भारतीयों ने
उद्यान के विकास के लिये
तीन सौ से ज्यादा कमल सौंपे हैं
उस माली का कोई
चवन्नी छाप शत्रु अहित करने की सोचेगा, तो
उस शत्रु को
हम पंचमहाभूत में नहीं
सिर्फ, शून्य में
जी हां,
सिर्फ शून्य में विसर्जित कर देंगे
कसम भवानी की........
कुमार अहमदाबादी
कविता क्या है? शब्दों का खेल
शब्द क्या है? व्याकरण का हिस्सा
व्याकरण क्या है? सम्पर्क का माध्यम
सम्पर्क क्या है? इंसान की जरुरत
इंसान क्या है? इंसान की जरुरत
इंसान क्या है? कुदरत का खिलौना
कुदरत क्या है? संसार की कर्ता धर्ता
संसार क्या है? भावनाओं की सभा
भावनाएं क्या है? कविता का हृदय
कविता क्या है? शब्दों का खेल
शब्द क्या है?..............
कुमार अहमदाबादी
तुम समझो भोलेनाथ
मैं एक नारी हूँ
नारी मन को व्यक्त करने के लिये
किसी शब्द का प्रयोग नहीं करती
वो हमेशा संकेतों का सहारा लेती है
मंद मंद मुस्कराना,
नजर चुराते हुये नजर मिलाना
शरमाना, न शरमाते हुये भी शरमाना,
आंख झुकाना, चूडी बजाना
पायल छनकाना, प्यारा गीत गुनगुनाना
अब इतना कहने पर भी नहीं समझे
तो मुझे लगता है
तुम सचमुच भोले हो
*कुमार अहमदाबादी*
ये जो अलकलट तुम्हारी आंखों के आगे आयी है
ये हंस सी सफेद दंतपंक्ति जो मुस्कुरा रही है
आंख की पलक जो तुम्हें देख रही है
ये शर्मीले होठ तुम्हारे कानों को छूना चाहते हैं
इन सब के संकेतों को तुम कब समझोगे
कब मुझे शब्दों का प्रयोग करने से रोकोगे?
कुमार अहमदाबादी
ए मेरे प्यारे आंगन,
आज तेरे दामन में मेरी आखरी रात है। कल से तू मेरा होकर भी मेरा नहीं रहेगा। आज तेरे आंचल में आखिरी बार चैन से सोना चाहती हूँ। कल से शायद तेरे आंगन में अब तक जैसे सोती थी। ऐसे सोना मेरे नसीब में हो या ना हो।
आज न जाने कितने पल कितनी घडियां कितने दिन कितने सप्ताह और कितने वर्ष तेरे दामन में चैन से सोयी हूँ, खेली- कूदी हूँ। वो सब इस पल मेरी आंखों में तारों के समान झिलमिला रहे हैं। न जाने क्या क्या याद आ रहा है।
पापा कहते हैं। यहीं मैंने पहला कदम ऊठाया था यानि की चलना सीखी थी। लेकिन तब कहाँ मालूम था। चलते चलते एक दिन एसा आयेगा। मुझे तुझे यानि आंगन से ही बाहर चला जाना पडेगा।
मम्मी का खाना खाने के लिये पुकारना, पाठशाला जाने के लिये तैयार करना, पाठशाला की यूनिफॉर्म पहनाना; पाठशाला के लिये तैयार करते समय ये कहना 'हे भगवान, ये लडकी अपनी जिम्मेदारी को कब समझेगी।' माँ की डांट से अक्सर पापा का बचाना। पाठशाला के शिक्षक द्वारा दिया गया। होमवर्क करना, कितना कुछ याद आ रहा है।
पापा व मम्मी मैं क्या लिखूं और क्या बाकी रखूं।
भैया के साथ लडना-झगड़ना, प्यार करना, साथ भोजन करना, होमवर्क करने में एक दूसरे की मदद करना व लेना।
😭😭😭😭😭😭😭😭😭
अब और नहीं लिख सकती मैं, आंखे जिन्हें कल बरसना है। इसी पल बरसने लगेगी। बहुत ही मुश्किल से आंसूओं को रोककर रखा है।
और फिर आज तेरे दामन में गहरीवाली आखिरी नींद भी तो लेनी है। एसा नहीं है की कल के बाद कभी तेरी गोद में सोउंगी नहीं। लेकिन वो नींद कुंवारी नींद नहीं होगी। आज अंतिम कंवारी नींद है।
आंगन की बेटी
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लेखक
कुमार अहमदाबादी
सम्राट में नहीं तथा दरवेश में नहीं
मेरी मनुष्यता किसी गणवेश में नहीं
जहाँ तक मुजे याद है। ये शेर भगवतीकुमार शर्मा के शेर का अनुवाद है। कवि कहते हैं कि करीब करीब समाज में सार्वजनिक सेवा से संबंधित हर व्यक्ति के लिये गणवेश यानि ड्रैस तय की गयी है। जब व्यक्ति कार्यरत होता है। तब वो अपनी ड्रेस यानि गणवेश में होता है। जैसे कि पुलिस के लिये खाकी,वकीलों के लिये काला कोट, डॉक्टर, नर्स के लिये सफेद रंग के वस्त्र, कुलीयों के लिये लाल रंग के वस्त्र तथा अन्य संस्थाओं के व्यक्तियों के लिये भी वस्त्र व रंग तय किये गये हैं। यहां तक की प्रत्येक पाठशाला भी अपने विद्यार्थीयों कः लिये तय करती है। आजकल तो ऑफिस व शॉरुम भी अपने कर्मचारियों को एक समान वस्त्र व रंग का तय करने लगे हैं।
ये सारे ड्रैस क्या दर्शाते हैं?
ये इंसान का व्यावसायिक दरज्जा, समाजिक आदि को दर्शाते हैं। लेकिन मानवता किसी ड्रैस की मोहताज नहीं है। वो एक सम्राट में भी हो सकती है और एक गरीब के पास भी हो सकती है।
बाहर के आवरण इंसान का सामाजिक दरज्जा बता सकते है। लेकिन एसे कोई भी वस्त्र नहीं है। जो उस की मानवता को व्यक्त कर सके।
किसी राग में नहीं है किसी द्वेष में नहीं
ये लोही है कि बरफ? जो आवेश में नहीं
कवि ने मानव स्वभाव की स्वाभाविकता को व्यक्त किया है। प्रत्येक मानव में राग, द्वेष, क्रोध, लोभ होते ही हैं। क्यों कि इंसान के शरीर में बरफ नहीं, खून दौडता है।जिस आदमी के लहू में आवेश हो, राग न हो, स्पर्धात्मकता न हो, वो बरफ समान होता है। जो कभी पिघल कर बह भी जाये तो भी कोई परवाह नहीं करता।
ता-29 - 03 - 2010 के दिन मेरी कॉलम में छपे लेख का अंशानुवाद
कुमार अहमदाबादी
प्रिये,
मैं
सुहाग की
सेज पर
फूल नहीं बिछाउंगा
क्यों कि,
मैं नहीं चाहता
हमारे
दाम्पत्य जीवन
का
प्रारंभ
कोमलता
को
कुचलकर हो
*कुमार अहमदाबादी*
वैष्णोदेवी मंदिर के बाद यात्रळु एस.जी.हाइवे पर नये बने जगन्नाथ जी मंदिर के दर्शन करने पहुंचे। एसजी हाइवे पर स्थित जगन्नाथजी का मंदिर एकदम नया है। यात्राळुओं में से शायद ही किसी को इस मंदिर के बारे में पहले से मालूम होगा। जगन्नाथ मंदिर में जो मूर्तियां है। एसा लगता है वो जमालपुर मंदिर की प्रतिकृति है। मंदिर-यात्रा के दौरान बसों में एकदम धार्मिक वातावरण बन गया था। यात्री भजन गाकर भक्तिरस पी रहे थे। धीरे धीरे यात्रा एक के बाद एक मंदिर तक पहुंचती रही। यात्री दर्शन करते रहे। यात्रियों को यात्रा के दौरान बस में ही और बाहर अल्पाहार और आलू की सब्जी और पूडी का सादा भोजन और पानी उपलब्ध करवाया गया। उस से पहले यात्रा के दौरान दूसरे या तीसरे मंदिर के दर्शन के स्थल पर चाय, कॉफी व बिस्कुट का नाश्ता दिया गया। यात्रियों ने यात्रा के दौरान एक के बाद जिन मंदिरों में दर्शन लाभ लिये। उन मंदिरों की सूचि इस प्रकार है।
🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁
*श्री धर्म आनंद यात्रा में जिन मंदिरो के दर्शन किये उनकी सूची,*
1. श्री तिरुपति बालाजी मंदिर, एसजी हाइवे
2. श्री वैष्णों देवी मंदिर,एसजी हाइवे
3. श्री जगन्नाथ मंदिर, अडालज
4. श्री अन्नपूर्णा देवी मंदिर,अडालज
5. श्री प्रभा हनुमानजी मंदिर,जमीयत पूरा
6. श्री त्रि मंदिर, जमीयत पूरा
7. श्री सोला भागवत विद्यापीठ, एसजी हाईवे
8. श्री सोमनाथ महादेव, भाडज
9. श्री हरे कृष्ण मंदिर,भाडज
10.श्री इस्कॉन मंदिर, एसजी हाइवे
11. श्री सोमनाथ महादेव मंदिर,नारोल पिराणा रोड
12. श्री बलिया बाप मंदिर,लाम्भा गाम
13. श्री जगन्नाथ जी मंदिर ,जमालपुर
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चूंकि समय पूरा हो रहा था। एएमटीएस के नियमानुसार निश्चित समय में जितने मंदिरों के दर्शन का लाभ मिला। उतना लाभ लेने के बाद मंदिर-यात्रा की बसें वापस समाज की वाडी की तरफ रवाना हुयी। वैसे ये भी क्या कम है कि एक दिन में संख्या में इतने सारे मंदिरों में जाकर परमात्मा के दर्शनों का लाभ मिला। परमात्मा का दर्शन सब से बडा प्रसाद होता है। वो प्रसाद लेकर और साथ ही साथ कुछ मीठी यादें लेकर हम वापस समाज की वाडी पर पहुंचे। वहां सब ने एक ग्रुप फोटो खिंचवाया। ग्रुप फोटो खिंचवाने के बाद सब अपने अपने गृहमंदिर( मेरी राय में परमात्मा के मंदिर के बाद घर सब से बडा मंदिर होता है) की तरफ रवाना हुए।
*कुमार अहमदाबादी*
एक दिन वॉट्स'प पर मैसेज देखा। जो सूचना रुपी मैसेज था; जो कि विशेषतः समाज के वरिष्ठ नागरिकों के लिये था। सूचना ये थी; सागर मेला परिवार गोठ समिति द्वारा समाज के वरिष्ठ नागरिकों को अहमदाबाद और उस के आसपास के मंदिरों के दर्शन करवाने का आयोजन किया गया है। सूचना में आयोजन की ता.23-08-2021 समय सुबह 7:30 बजे का लिखा था। इस के अन्य आवश्यक दिशानिर्देश थे। जैसे कि यात्रा में आनेवाले सब को अपना आधिकारिक पहचान-पत्र साथ रखना होगा। जरुरत के अनुसार सूखा नाश्ता साथ रखें। गहने व अन्य कीमती जेवर पहनकर न आयें। समय एवं सूचनाओं का पालन करें। यात्रा के दौरान भजन कीर्तन आनंद लेना हो तो भजनों की पुस्तक या पुस्तिका साथ ले सकते हैं। सूक्ष्म वाजिंत्र भी साथ ले सकते हैं। चूंकि यात्रा वरिष्ठ नागरिकों के लिये थी। एक विशेष सूचना थी कि 'यात्री रोज़मर्रा की दवाई जरुर साथ लेवें।' सोश्यल डिस्टेंस व मास्क के नियम का पालन करने के लिये विशेष आग्रह किया गया था।
ता-23-08-2021 की सुबह हुयी। सब यात्री समय के अनुसार समाज की वाडी पर पहुंच गये। ए.एम.टी.एस. की बसें आयीं। सब यात्रियों को जिस बस में बैठने की सूचना थी। उस के अनुसार सब अपनी अपनी बस में सवार हो गये।
हाँ, रवाना होने से पहले मैंने एक कार्य अवश्य किया था। यात्रा के आयोजकों में से एक केदार जी को कहकर हम जिस बस में बैठे थे। उस के आरटीओ नंबर का फोटो खिंचवा लिया। अच्छी समझो या बुरी ये मेरी आदत है। किसी महत्वपूर्ण यात्रा से पहले वाहन का आरटीओ नंबर जरुर नोट कर लेता हूँ।
बहरहाल साहब, जयकारे के साथ यात्रा आरम्भ हुयी।
यात्रा का सब से पहला पडाव था,
*तिरुपति बालाजी मंदिर, एस जी हाइवे*
वहां सब ने दर्शन किये। तिरुपति बालाजी का मुख्य व सब से महत्वपूर्ण मंदिर दक्षिण भारत में है। किंवदंती के अनुसार तिरुपति बालाजी को विष्णु का अवतार है। अहमदाबाद में भी तिरुपति बालाजी के मंदिर का ई.स.2007 में दर्शनों के लिये उपलब्ध हुआ। बालाजी मंदिर के बाद मंदिर-यात्रा की बसें पहुंची। वैष्णीदेवी मंदिर के लिये रवाना हुयी।
अहमदाबाद का वैष्णोदेवी मंदिर जम्मू कश्मीर के मूल वैष्णो देवी मंदिर की एक सच्ची प्रतिकृति है और पवित्र हिंदू मंदिर की तीर्थ यात्रा करने वाले भक्तों की तलाश को पूरा करता है। पवित्र मंदिर के वातावरण का वास्तविक अहसास देने के लिए इसे एक नकली पहाड़ी के ऊपर स्थापित किया गया है।
पीले बलुआ पत्थर से बनी एक मानव निर्मित पत्थर की पहाड़ी एक गोलाकार आकार में है जिसमें कई सुंदर नक्काशी और देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं। तीर्थयात्रियों को पहाड़ी की चोटी पर स्थित मुख्य मंदिर तक पहुंचने के लिए मानव निर्मित पहाड़ी से गुजरना पड़ता है।
एक व्यक्तिगत ट्रस्ट द्वारा निर्मित सरखेज गांधीनगर राजमार्ग पर वैष्णोदेवी सर्कल पर स्थित है।
*(मंदिर यात्रा का विवरण शब्दयात्रा के रुप में जारी है)*
जन्मो जन्मों की अभिलाषा हो तुम सतरंगी जीवन की आशा हो तुम थोडा पाती हो ज्यादा देती हो दैवी ताकत की परिभाषा हो तुम कुमार अहमदाबादी